Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
अनंतमतीना माता–पिता पण मुनिराजनो उपदेश सांभळवा आव्या हता.
अने अनंतमतीने पण साथे लाव्या हता. उपदेश बाद तेमणे आठ दिवसनुं ब्रह्मचर्यव्रत
लीधुं; अने गम्मतमां अनंतमतीने कह्युं के, तुं पण आ व्रत लई ले. निर्दोष
अनंतमतीए कह्युं: भले, हुं पण ते व्रत अंगीकार करुं छुं.
ए प्रसंगने केटलांक वर्षो वीती गयां; अनंतमती हवे युवान थई, तेनुं रूप
सोळकळाए खीली ऊठयुं. रूपनी साथे धर्मना संस्कारो पण खीलता गया.
एक वार सखीओ साथे ते बागमां हरवा–फरवा गई हती ने एक झूला
पर झूली रही हती; एवामां त्यांथी एक विद्याधरराजा नीकळ्‌यो, ने अनंतमतीनुं
अद्भुत रूप देखीने ते मोहित थई गयो, एटले विमानमां तेने उपाडी गयो–पण
एवामां तेनी राणी आवी पहोंची; तेथी भयभीत थईने ते विद्याधरे अनंतमतीने
एक भयंकर वनमां छोडी दीधी. आम कुदरतयोगे एक दुष्ट राजाना पंजामांथी
एनी रक्षा थई.
हवे घोरवनमां पडेली अनंतमती पंचपरमेष्ठीनुं स्मरण करती जाय छे, ने
भयभीत थईने रुदन करे छे के, अरे! आ जंगलमां हुं क््यां जाउं? शुं करुं! अहीं कोई
माणस तो देखातुं नथी
–एवामां ते जंगलनो राजा भील शिकार करवा नीकळेलो, तेणे अनंतमतीने
देखी.......अरे! आ ते कोई वनदेवी छे के शुं? आवी अद्भुत सुंदरी दैवयोगे मने मळी
छे–एम ते द्रुष्ट भील पण तेना पर मोहित थई गयो ने तेने पोताना घरे लई गयो,
अने कह्युं–हे देवी! हुं तारा पर मुग्ध थयो छुं अने तने मारी राणी बनाववा ईच्छुं
छुं....तुं मारी आशा पूरी कर.
निर्दोष अनंतमती तो ए पापीनी वात सांभळता ज धूसके ध्रूसके रोवा
लागी.....अरे! हुं शीलव्रतनी धारक.....ने मारा उपर आ शुं थई रह्युं छे! जरूर
पूर्वे कोई गुणीजनोना शील पर में खोटा आळ नाख्या हशे, के तेमनो अनादर
कर्यो हशे; ते दुष्टकर्मने लीधे अत्यारे ज्यां जाउं त्यां मारा उपर आवी विपत्ति
आवी पडे छे. पण हवे वीतरागधर्मनुं में शरण लीधुं छे, एना प्रतापे शीलव्रतथी
हुं डगवानी नथी. अंते देवो पण मारा शीलनी रक्षा करशे. भले प्राण जाय पण हुं
मारा शीलने नहीं छोडुं.