जेवो सरळ थईने पोताना दोषनी निंदा करवी ते भावशुद्धिनुं कारण छे. निष्कपटपणे
गुरु पासे कहेवाथी दोष टळी जाय छे.
मुनिओ देह–वचननी ममताथी रहित छे, अकषाय परिणामथी ते सहन करे छे. अरे,
मारुं अपमान थयुं–एवुं शल्य पण नथी राखता. ने पोताने कांई वचननी ममता नथी
के आणे मने आम कह्युं माटे हुं तेने कंईक कहुं, जेथी बीजीवार कांई कहे नहीं. अंदरमां
चैतन्यना उपशमभावने साधवामां मशगुल मुनिओ जगतना वचनना कलेशमां पडता
नथी, एमने एवी नवराश ज क््यां छे के एवामां पडे! वचननो उपद्रव आवे के देह
शांतिमां वर्ते छे तेने सर्वत्र शांति ज छे. जगतमां बीजुं कांई शरण नथी; शरण एक
चैतन्य निर्भयराम ज छे. दुर्वचन सांभळता क्रोध करे तो ते महान शेनो? हजारो
योद्धाने जीतनारा योद्धा करतां क्रोधने जीतनारा मुनिओ महान छे. अरे मुनि! दुष्ट
जीवना वचनोने तुं तारा पापना नाशनुं कारण बनाव.
अरे जीव! तुं क्रोधने छोड! ने क्षमागुणने धारण कर. सामा जीवोना परिणाम तेनी
पासे रह्या. बीजाना परिणामनी जवाबदारी पोताना उपर नथी, पण पोताना
परिणाममां हे जीव! तुं क्षमा राख. जगतनी प्रतिकुळताना प्रसंगे संतो अंदर चैतन्यना
शांतिना कुवामां फडाक करता ऊंडे ऊतरी जाय छे......श्रावक ते पण मुनिनो भक्त अने
उपासक छे. तेणे पण आवी परिणामशुद्धि प्रगट करवा योग्य छे. पंचमकाळमां
प्रतिकूळता तो होय; माटे तुं बहु सावचेतीथी क्षमाभावने जाळवजो.