: १८ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
स......म्य......ग्द......र्श......न
(फागण वद १० ना प्रवचनमांथी)
अहीं कारणस्वभाव अने कार्यस्वभाव बतावीने समजावे छे के हे भाई,
तारे जे आत्मानुं कार्य प्रगट करवुं छे तेनुं कारण तारा स्वभावमां ज छे.
आवा कारणस्वभावने अवलंबीने संतो आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनो
अनुभव करे छे ने मोक्षने साधे छे. मोक्षना ईच्छुक जीवोने माटे आ प्रसिद्ध मार्ग छे.
अहो, सम्यग्दर्शनरूपी शुद्ध कार्य प्रगटे एवुं सामर्थ्य अत्यारे ज आत्मामां
विद्यमान छे; ज्यां कारणपणे तेनो स्वीकार कर्यो त्यां सम्यग्दर्शनादि कार्य पण होय
ज छे. आम कारण–कार्यनी महान संधि छे.
कारण कोनुं? के कार्य थयुं तेनुं. जेवुं शुद्ध–आनंदमय कार्य थयुं, तेवुं ज कारण
विद्यमान छे; आ रीते कारण–कार्य बन्ने एक जातनां (शुद्ध) छे, –तेने ज्ञानी ज
जाणे छे, अने तेओ सम्यग्दर्शनादिने साधे छे.
बीजे बधेथी द्रष्टि हठावीने, अंतरमां सहज निजात्मतत्त्वने द्रष्टिमां ले, तेमां
एकाग्रताथी सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूप मोक्षमार्ग प्रसिद्ध थाय छे; आ प्रसिद्ध
मार्गने हे जीवो! तमे भक्तिथी आराधो.
सहज चैतन्यरूप आत्मा पोते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमे ते
प्रसिद्ध मोक्षमार्ग छे. –आम जाणीने तीक्ष्णबुद्धिवाळा शुद्धद्रष्टिजीवो पोताना
शुद्धआत्माने एकने ज भजे छे.
आचार्यदेव कहे छे के अहा! आवो मोक्षमार्ग प्रसिद्ध छे.....ज्ञानीओने
अंतरमां प्रगट अनुभवाय छे; तेने जाणीने तमे पण पोताना सहज
परमात्मतत्त्वना आश्रये मोक्षमार्गने प्रगट अनुभवो.....स्वयं सम्यग्दर्शनादि
मोक्षमार्गरूपे परिणमो.
एवा सम्यक्त्वादि–परिणत सर्वे संतोने
आनंदपूर्वक नमस्कार हो.