: २० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
* मैं सबको जाननहार..... *
पं. श्री बुधजन कवि रचित आ अध्यात्मभजन, माननीय प्रमुखश्री
नवनीतभाई अवारनवार बोले छे; ते जिज्ञासुओनी मांगणीथी अहीं अर्थसहित
आपवामां आव्युं छे. (सं.)
हमकौं कछु भय ना रे, जान लियो संसार।।हमकौं ०
जो निगोदमैं, सो ही मुझमैं, सो ही मोक्षमंझार।
निश्चय भेद कछु भी नाहीं, भेद गिनै संसार।।हमको ०
परवश ह्वै आपा विसारिके, राग दोषकौ धार।
जीवत मरत अनादि कालतें, यौं ही है उरझार।। हमकौं ०
जाकरि जैसें जाहि समयमें, जो होता जा द्वार।
सो बनिहै टरिहै कछु नाहीं, करि लीनौ निरधार।।हमकाैं ०
अगनि जरावै पानी बोवै, विछुरत मिलत अपार।
सो पुद्गलरूपी मैं ‘बुधजन’ सबकौ जाननहार।।हमकाैं ०
‘बुधजन’ एटले के ज्ञानीजनो कहे छे के अमे आ संसारनुं स्वरूप जोई लीधुं
छे, अने तेमां सर्वने जाणनारा एवा अमारा ज्ञानस्वरूपने पण जाणी लीधुं छे, तेथी
हवे अमने कोई भय नथी.
निश्चयथी आत्मानुं शुद्धस्वरूप जेवुं मोक्षमां छे तेवुं ज निगोदमां छे, अने तेवुं
ज अत्यारे मारामां छे; अर्थात् निगोदादि बहिरात्मदशा, वर्तमान साधकरूप
अंतरात्मदशा, अने मोक्षरूप परमात्मदशा, –ए सर्व दशा वखते निश्चयथी आत्मानुं जे
शुद्धस्वरूप छे तेमां कोई भेद नथी; पर्यायना भेदे शुद्धस्वभावमां पण भेद गणतां
पर्यायबुद्धि थाय छे, अने ते संसार छे. परंतु अमे तो निश्चयथी एकरूप स्वरूप जाण्युं
छे, तेथी अमने संसारनो भय नथी.
अत्यार सुधी आत्मानुं शुद्धस्वरूप विसारीने हुं परवश रह्यो अने में राग–द्वेषने
धारण कर्या; तेथी अनादिकाळथी संसारमां जन्म–मरण कर्या, अज्ञानने लीधे अनादिथी
आवी मुंझवण ने दुःख जीवे सहन कर्युं. –परंतु हवे ज्ञानस्वरूपने जाणी लीधुं–तेथी
संसारनो कोई भय न रह्यो.
(अनुसंधान पानुं ३१)