Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : २१ :
मार्ग अने मार्गनुं फळ
निजपरमात्मतत्त्वनां सम्यक् –अने ते शुद्ध रत्नत्रयनुं फळ
श्रद्धान–ज्ञान–अनुष्ठानरूप शुद्ध स्वात्म–उपलब्धि अर्थात्
रत्नत्रयात्मक मार्ग परम निर– निजशुद्धात्मानी प्राप्ति छे,
पेक्ष होवाथी मोक्षनो उपाय छे. –जे परम आनंदरूप छे.

मोक्षना आवा मार्गनुं अने तेना फळनुं साचुं कथन जिनशासनमां छे. परथी
अत्यंत निरपेक्ष एवो वीतराग मोक्षमार्ग पूर्वाचार्योए बताव्यो छे, ते मार्गमां कोई
बीजानी अपेक्षा नथी; बीजानो आश्रय नथी. पोताना शुद्ध आत्मस्वभावना साचा
श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रतारूप रत्नत्रय ते शुद्ध रत्नत्रय छे; आवा शुद्ध रत्नत्रय एटले
निश्चय रत्नत्रय ते मोक्षनो उपाय छे. एमां परनी के रागनी भेळसेळ जरापण नथी,
एकला स्वद्रव्यना ज आश्रये छे–तेथी ते शुद्ध छे, परनी अपेक्षारहित छे. पोताना
आत्मा सिवाय बीजा कोईनी अपेक्षा के आश्रय मोक्षमार्गमां नथी; एटले परना
आश्रये जे भाव थाय ते मोक्षमार्ग नथी. स्वात्म–उपलब्धि एटले पोताना आत्मानुं
जेवुं स्वरूप छे तेवी प्रगट प्रसिद्धि, तेनी प्राप्तिनो मार्ग स्वद्रव्यना ज आश्रये छे. –
आवो मार्ग आ परमागममां प्रसिद्ध कर्यो छे.
भाई! जिनशासनमां भगवाने कहेला आवा स्वाश्रित मार्गने तुं ओळख, अने
आनाथी विपरीत एवा पराश्रितमार्गनी श्रद्धा छोड. साचा मार्गनुं स्वरूप नक्की करीने
तुं त्वराथी स्वद्रव्यनो आश्रय कर ने परद्रव्यनो आश्रय त्वराथी छोड. स्वद्रव्यनी
अनुभूति तो स्वद्रव्यना ज आश्रये थाय ने! –ए तो स्पष्ट वात छे.
पर द्रव्यना आश्रये थता जे व्यवहाररत्नत्रय ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी.
स्वद्रव्यना आश्रये थता शुद्धरत्नत्रय ते ज एक मोक्षमार्ग छे. अहा! मारो आत्मा ज
स्वभावथी पूरा सामर्थ्यवाळो छे. –तेना ज अनुभवथी मोक्षनो परमानंद सधाय छे,
पछी बीजा कोईनी पण अपेक्षा मने नथी. मोक्षमार्गमां पर तरफ झुकाव ज नथी,