
रत्नत्रयात्मक मार्ग परम निर– निजशुद्धात्मानी प्राप्ति छे,
पेक्ष होवाथी मोक्षनो उपाय छे. –जे परम आनंदरूप छे.
मोक्षना आवा मार्गनुं अने तेना फळनुं साचुं कथन जिनशासनमां छे. परथी
बीजानी अपेक्षा नथी; बीजानो आश्रय नथी. पोताना शुद्ध आत्मस्वभावना साचा
श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रतारूप रत्नत्रय ते शुद्ध रत्नत्रय छे; आवा शुद्ध रत्नत्रय एटले
निश्चय रत्नत्रय ते मोक्षनो उपाय छे. एमां परनी के रागनी भेळसेळ जरापण नथी,
एकला स्वद्रव्यना ज आश्रये छे–तेथी ते शुद्ध छे, परनी अपेक्षारहित छे. पोताना
आत्मा सिवाय बीजा कोईनी अपेक्षा के आश्रय मोक्षमार्गमां नथी; एटले परना
आश्रये जे भाव थाय ते मोक्षमार्ग नथी. स्वात्म–उपलब्धि एटले पोताना आत्मानुं
जेवुं स्वरूप छे तेवी प्रगट प्रसिद्धि, तेनी प्राप्तिनो मार्ग स्वद्रव्यना ज आश्रये छे. –
आवो मार्ग आ परमागममां प्रसिद्ध कर्यो छे.
तुं त्वराथी स्वद्रव्यनो आश्रय कर ने परद्रव्यनो आश्रय त्वराथी छोड. स्वद्रव्यनी
अनुभूति तो स्वद्रव्यना ज आश्रये थाय ने! –ए तो स्पष्ट वात छे.
स्वभावथी पूरा सामर्थ्यवाळो छे. –तेना ज अनुभवथी मोक्षनो परमानंद सधाय छे,
पछी बीजा कोईनी पण अपेक्षा मने नथी. मोक्षमार्गमां पर तरफ झुकाव ज नथी,