
नियम–सार छे एटले शुद्ध स्वाभाविक एवी निर्विकल्प रत्नत्रय परिणति ते
नियमसार छे.....ते ज निर्वाणरूप मोक्षसुखनुं कारण छे....एटले मोक्षने ते
नियमथी कर्तव्य छे.
शुद्धज्ञानचेतनास्वरूप छे ते मोक्षमार्गनुं कारण छे, एटले तेने ‘कारणनियम’
कहेवाय छे. तेना आश्रये ‘कार्यनियम’ रूप मोक्षमार्ग प्रगटे छे. मोक्षमार्गना
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करवा माटे पोताना आवा स्वभाव सिवाय बीजा
कोईनो आश्रय नथी, बीजुं कोई कारण नथी. आ शुद्ध कारण पोतामां त्रिकाळ छे,
तेमां अंतर्मुख थईने ते कारणने सेवतां कार्य प्रगटे छे–एटले मोक्षमार्ग थाय छे.
छे, मोक्षने माटे नियमथी करवा जेवुं ते कार्य छे, अने तेना आश्रयभूत त्रिकाळी
शुद्धज्ञानचेतना ते ‘कारणनियम’ छे.
रत्नत्रयनो ज मोक्षमार्गमां स्वीकार करीने व्यवहार रत्नत्रय पण काढी नांख्या.
अहो, आवो सुंदर मार्ग आचार्यदेवे आ नियमसारमां खुल्लो कर्यो छे. सुंदर अने