Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : २३ :
कारण–कार्यनी अपूर्व संधि सहित
सुंदर मोक्षमार्ग
* * * * *
‘नियम’ एटले चोक्कस; मोक्षने माटे जे चोक्कस; करवा जेवुं कार्य छे ते
नियम छे, एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते नियम छे. तेमां पण जे सार छे ते
नियम–सार छे एटले शुद्ध स्वाभाविक एवी निर्विकल्प रत्नत्रय परिणति ते
नियमसार छे.....ते ज निर्वाणरूप मोक्षसुखनुं कारण छे....एटले मोक्षने ते
नियमथी कर्तव्य छे.
मोक्षार्थी जीवने मोक्षने माटे आवा शुद्धरत्नत्रय प्रगट करवा ते प्रयोजन छे.
ते केवी रीते प्रगटे? के अंतरमां जे अनंतचतुष्टय–स्वभावरूप
शुद्धज्ञानचेतनास्वरूप छे ते मोक्षमार्गनुं कारण छे, एटले तेने ‘कारणनियम’
कहेवाय छे. तेना आश्रये ‘कार्यनियम’ रूप मोक्षमार्ग प्रगटे छे. मोक्षमार्गना
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करवा माटे पोताना आवा स्वभाव सिवाय बीजा
कोईनो आश्रय नथी, बीजुं कोई कारण नथी. आ शुद्ध कारण पोतामां त्रिकाळ छे,
तेमां अंतर्मुख थईने ते कारणने सेवतां कार्य प्रगटे छे–एटले मोक्षमार्ग थाय छे.
शुद्धज्ञानचेतना (जेमां शक्तिरूप अनंतचतुष्टय समाई जाय छे–) जे
त्रिकाळ छे, तेने चेतवुं–अनुभववुं ते मोक्षमार्ग छे. आ मोक्षमार्ग ते ‘कार्यनियम’
छे, मोक्षने माटे नियमथी करवा जेवुं ते कार्य छे, अने तेना आश्रयभूत त्रिकाळी
शुद्धज्ञानचेतना ते ‘कारणनियम’ छे.
जुओ, अहीं कार्य अने कारणनी अलौकिक संधि छे. आवा शुद्ध कारण अने
शुद्ध कार्यनी संधि बतावीने, वच्चेथी रागादि अशुद्ध कारणने काढी नांख्या; शुद्ध
रत्नत्रयनो ज मोक्षमार्गमां स्वीकार करीने व्यवहार रत्नत्रय पण काढी नांख्या.
अहो, आवो सुंदर मार्ग आचार्यदेवे आ नियमसारमां खुल्लो कर्यो छे. सुंदर अने