आनंदरूप छे माटे सुंदर छे. सूक्ष्म होवा छतां पोताने स्वानुभवगम्य थाय तेवो मार्ग
छे. मुमुक्षुओ आ मार्गने ज अनुभवीने मोक्ष पाम्या छे.
त्रिकाळी कारण पण बतावीने मुनिराजे कारण–कार्यनी अद्भुत संधि करी छे. त्रिकाळी
शुद्धद्रव्य ते कारण, तेना आश्रये प्रगटेली शुद्धपर्याय ते कार्य; जेणे शुद्ध कारणनो स्वीकार
कर्यो तेने शुद्धकार्य होय ज–एटले मोक्षमार्ग प्रगटे ज; कार्यवगर कारणनो स्वीकार कर्यो
कोणे? उपयोग अत्यंत अंतर्मुख थईने ज्यां स्वभावना आश्रये मोक्षमार्गरूप कार्य
प्रगट्युं त्यां धर्मी कहे छे के ‘अहो! आ मारा कार्यनुं कारण! –आम धर्मी जीव कार्य–
कारणनी अपूर्व संधिसहित मोक्षने साधे छे.
शुद्धरत्नत्रयकार्य, तेनुं कारण पण पोतामां त्रिकाळ छे, तेने कारण नियम कहेवाय छे. ते
‘कारण’ तो त्रिकाळ छे; तेने कांई नवुं करवानुं नथी; पण ते कारणनो स्वीकार करीने
तेना आश्रये सम्यग्दर्शनादि कार्य प्रगट करवुं ते चोक्कस करवा जेवुं कार्य छे, तेने
‘कार्यनियम’ कहेवाय छे. आ कार्य ते ज मोक्षनो मार्ग छे, अने परम अतीन्द्रियसुखनी
अनुभूति ते मार्गनुं फळ छे. आवा सुंदर मार्ग अने मार्गफळने जाणीने मारा परम
तत्त्वना सेवनथी हुं मोक्षसुखने प्राप्त करुं छुं. वच्चे व्यवहार अने विकल्पो आवे तेने हुं
मोक्षमार्गमां स्वीकारतो नथी, तेने छोडीने परमात्मतत्त्वना आश्रये ज हुं मोक्षसुखने
साधुं छुं.
अंतर्मुख स्वभाव–आश्रित निरालंबी मार्ग छे. आवा सुंदर मार्गनो संतो साधे छे ने
जगतने देखाडे छे.