Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : २५ :
(हवे मार्गरूप जे शुद्धरत्नत्रय तेनुं दरेकनुं स्वरूप कहे छे:)
मोक्षमार्गमां जे सम्यग्ज्ञान छे–ते केवुं छे?
जेमां परद्रव्यनुं जरापण अवलंबन नथी, आखोय उपयोग सर्वथा अंतमुर्ख
थईने पोताना परम तत्त्वनुं परिज्ञान करे छे ने अंतरमां तेने उपादेय करे छे, एवुं
ज्ञान ते साचुं ज्ञान छे, ते ज मोक्षनुं साधन छे. जे ज्ञानउपयोग अत्यंत अंतर्मुख थईने
पोताना शुद्ध ज्ञायकतत्त्वनी उपासना करे छे ते ज्ञान ज मोक्षनुं कारण छे, ते ज
नियमथी कर्तव्य छे. बहिर्मुख कोईपण विकल्प ते मोक्षने माटे कर्तव्य नथी. माटे कहे छे
के हे मोक्षार्थी जीवो! तमे उपयोगने अंतरमां वाळीने स्वद्रव्यने त्वराथी ग्रहण करो ने
परद्रव्यनुं ग्रहण त्वराथी छोडो.
वाह! परम तत्त्वनुं परिज्ञान अंतर्मुख उपयोगवडे थाय छे. ईन्द्रियज्ञानरूप
परसन्मुख उपयोग वडे परम तत्त्वनुं सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. उपयोगने अंतर्मुख करीने
स्वद्रव्यनुं अवलंबन लीधुं तेमां जराय परद्रव्यनुं अवलंबन नथी, आवा उपयोग वडे
आत्मानुं सम्यग्ज्ञान थाय छे. –आवो अंतर्मुखी मोक्षमार्ग छे.
उपयोग बहिर्मुख थईने परनुं जे ज्ञान थाय छे ते पण पोताथी ज थाय
छे, ते कांई परथी थयुं नथी, पण ते परावलंबी ज्ञान छे, ते मोक्षने साधी शकतुं
नथी. मोक्षने साधनारुं ज्ञान परद्रव्यना अवलंबन वगरनुं छे. देव–गुरु–शास्त्र के
रागादि ए बधायथी पार एकला शुद्ध स्वद्रव्यने ज अवलंबतो उपयोग मोक्षने
साधे छे.
संपूर्णपणे अंतर्मुख उपयोग ज मोक्षनुं कारण थाय छे. अंतर्मुख उपयोग
पण मोक्षनुं कारण थाय ने थोडोक बहिर्मुख उपयोग पण मोक्षनुं कारण थाय–एम
नथी; उपयोगमां थोडुंक आत्मानुं अवलंबन अने थोडुंक देव–गुरु–शास्त्रनुं
अवलंबन,–एम बे अवलंबन नथी, एकलुं स्वद्रव्यनुं ज आलंबन छे. बहारनुं
अवलंबन जरा पण तेमां नथी, एटले बहिर्मुख कोईपण भाव (अशुभ के शुभ)
ते आत्माने मोक्षनुं साधन नथी. आत्मालंबी वीतरागभाव एकलो ज मोक्षनुं
साधन छे.
जुओ तो खरा, परथी अत्यंत निरपेक्ष अंतर्मुखी मोक्षमार्ग वीतरागी