Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
संतोए जगतमां भव्यजीवोना मोक्षने माटे प्रसिद्ध कर्यो छे. आवा अंतरना
अतीन्द्रिय मार्गनो निर्णय करीने अंदर स्वद्रव्यना आलंबननो वारंवार प्रयोग
करवो जोईए.
मोक्षना हेतुरूप सम्यग्ज्ञान–दर्शन–चारित्र त्रणेमां अखंड स्वद्रव्यनुं ज
आलंबन छे, ज्ञान–दर्शन–चारित्र एवा गुणभेदनुं आलंबन नथी. परमतत्त्व कहो,
शुद्ध जीवास्तिकाय कहो के कारणपरमात्मा कहो, –एवो जे पोतानो परम
ज्ञायकस्वभाव तेना ज अंतर्मुख अवलंबने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग
प्रगटे छे. तेमां सम्यग्ज्ञाननुं सर्वथा अंतर्मुखपणुं बताव्युं. हवे सम्यग्दर्शननुं
स्वरूप समजावे छे.
मोक्षमार्गमां सम्यग्दर्शन छे –ते केवुं छे?
प्रथम तो सम्यग्दर्शन पामनार जीव केवो छे? के भगवान परमात्मसुखनो
अभिलाषी छे; पोताना आत्मसुख सिवाय जगतमां बीजी शेनीये अभिलाषा
नथी; एवा जीवने शुद्ध अंतरतत्त्वना आनंदनुं जन्मधाम एवुं पोतानुं शुद्ध
जीवास्तिकाय द्रव्य–तेना अवलंबने जे श्रद्धा थाय छे ते सम्यग्दर्शन छे.
सम्यक्श्रद्धामां पोताना शुद्ध आत्मा सिवाय बीजा कोईनुं आलंबन नथी. अंदरमां
पण ‘आ पर्याय वडे आ द्रव्यने पकडुं’ एवो भेद नथी. स्वद्रव्यनुं अवलंबन थयुं
त्यां शुद्ध पर्याय वर्ते ज छे.
अहा, मारा आनंदना विलासनुं धाम तो मारो आत्मा छे; मारा आत्मामां
ज अतीन्द्रिय आनंदनो उद्भव थाय छे, तेथी आनंदनुं जन्मधाम मारो आत्मा ज
छे. –एम अंर्तद्रष्टि वडे प्रतीत करी ते सम्यग्दर्शन छे. ते सम्यग्दर्शननी साथे ज
आत्मामांथी अतीन्द्रिय आनंदनो जन्म थाय छे; सम्यग्दर्शन थतां आनंदनो जन्म
थयो...आत्मामांथी आनंदपुत्रनो अवतार थयो. पोताने माटे धर्मीने जगतमां
बीजा कोईनी अपेक्षा नथी. जेम दरियो पोते पोतामां डोले तेम धर्मी पोते
पोताना आनंदसमुद्रमां आनंद अनुभवे छे. कस्तुरीमृगनी जेम अज्ञानी बहारमां
पोतानो आनंद शोधे छे, धर्मी तो जाणे छे के मारो असंख्यप्रदेशी आत्मा ज मारा
आनंदनी उत्पत्तिनुं स्थान छे, मारा आत्मामां ज आनंद भर्यो छे. –आम अत्यंत
अंतर्मुख थईने पोताना शुद्ध स्वभावनी निर्विकल्प प्रतीति ते सम्यग्दर्शन छे.
सम्यग्दर्शन आनंदनी अनुभूति सहित प्रगटे छे तेथी तेनी साथे आनंदना
जन्मनी