अनुभव करो.
आवा शुद्ध मार्गनुं अने तेना उत्तम फळनुं स्वरूप वीतरागी संतोए भव्य
विना समकितके चेतन जनम विरथा गंवाता है!
तुझे समजाएं क््या मूरख! नहीं तुं दिलमें लाता है!
है दर्शन–ज्ञान गुण तेरा, ईसे भूला है कयों मूरख!
अरे. अब तो समझ ले तुं, चला संसार जाता है!
तेरे में और परमातम मैं कुछ नहीं भेद अय चेतन!
रतन आतमको मूरख कयों कांच बदले बिकाता है?
(कविए ठपको आपीने सम्यक्त्वनी केवी प्रेरणा करी छे!)