आम करवाथी परम सुख थाय छे. जेम धननो अभिलाषी जीव प्रथम तो लक्षण वडे
राजाने ओळखे छे ने श्रद्धापूर्वक तेनी सेवा करे छे, अने राजा प्रसन्न थईने तेने धन
आपे छे. तेम चैतन्य राजा एवो आ आत्मा अनंत चैतन्य वैभवसंपन्न छे; तेनो
ईच्छुक मुमुक्षु जीव उपयोगलक्षणवडे बराबर ओळखीने तेनी श्रद्धा करे छे अने तेमां
एकाग्र थईने तेने सेवे छे; त्यां चैतन्यराजा पोते प्रसन्न थईने पोताने ज्ञान–आनंदनो
वैभव आपे छे.
करवी जोईए. आत्माने तो ओळखे नही ने शरीरने के रागने सेवे तो कांई मळे नहीं.
ज्यां होय त्यांथी मळेने? शरीरमां ने रागमां कांई तारुं सुख नथी के तेनी सेवाथी तने
सुख मळे! सुखनो भंडोर तो तारो आत्मा पोते छे; तेनुं साचुं स्वरूप ओळखतां ते
सुख अनुभवाय छे. धर्म अने सुख तेने कहेवाय के जेमां आत्मानो स्पर्श थाय–
अनुभव थाय–साक्षात्कार थाय; परमात्मा पोतामां ज देखाय.
करवाथी आ मनुष्य अवतार मळ्यो छे, तेमां आत्मानुं हित केम थाय तेनो विचार कर.
१६ वर्षनी वये श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–हे जीव! बहारमां लक्ष्मी–कुटुंब वगेरेमां तारुं
सुख नथी, तेनी ममताथी तो तुं मनुष्यभव हारी जईश; परमां सुख मानतां तारा
आत्मानुं सुख भुलाई जशे. माटे तुं विचार तो करे के आत्माने साचुं सुख केम थाय?
ने क्षणक्षणनुं भयंकर भावमरण केम मटे?
विचार कर, तो अंतरमां तने तारा आत्मानो अनुभव थशे. आत्माना