Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ७ :
पोताना आत्मानी ओळखाण करीने परमात्मा केम थवाय? ते वात अहीं
राजानी सेवाना द्रष्टांतथी समजावे छे. (समयसार गाथा १७–१८)
जे आत्मानो अर्थी होय, आत्मा जेने वहालो होय, ते उद्यमपूर्वक आत्मानुं
स्वरूप जाणीने तेनी श्रद्धा करे छे, ने पछी तेमां ज स्थिर थईने तेनुं सेवन करे छे. –
आम करवाथी परम सुख थाय छे. जेम धननो अभिलाषी जीव प्रथम तो लक्षण वडे
राजाने ओळखे छे ने श्रद्धापूर्वक तेनी सेवा करे छे, अने राजा प्रसन्न थईने तेने धन
आपे छे. तेम चैतन्य राजा एवो आ आत्मा अनंत चैतन्य वैभवसंपन्न छे; तेनो
ईच्छुक मुमुक्षु जीव उपयोगलक्षणवडे बराबर ओळखीने तेनी श्रद्धा करे छे अने तेमां
एकाग्र थईने तेने सेवे छे; त्यां चैतन्यराजा पोते प्रसन्न थईने पोताने ज्ञान–आनंदनो
वैभव आपे छे.
पोते ज दातार, ने पोते ज लेनार; कोई बीजा पासे मांगवुं पडे तेम नथी. पण
ते माटे पोते पोतानुं स्वरूप ओळखीने तेनी सेवा (एटले के ज्ञान–श्रद्धा–एकाग्रता)
करवी जोईए. आत्माने तो ओळखे नही ने शरीरने के रागने सेवे तो कांई मळे नहीं.
ज्यां होय त्यांथी मळेने? शरीरमां ने रागमां कांई तारुं सुख नथी के तेनी सेवाथी तने
सुख मळे! सुखनो भंडोर तो तारो आत्मा पोते छे; तेनुं साचुं स्वरूप ओळखतां ते
सुख अनुभवाय छे. धर्म अने सुख तेने कहेवाय के जेमां आत्मानो स्पर्श थाय–
अनुभव थाय–साक्षात्कार थाय; परमात्मा पोतामां ज देखाय.
शरीर ते हुं छुं, मनुष्य हुं छुं–एम अज्ञानथी जीव पोताने शरीररूप माने छे;
पण शरीरथी भिन्न चैतन्यतत्त्व पोते कोण छे ते ओळखतो नथी. बापु! घणां पुण्य
करवाथी आ मनुष्य अवतार मळ्‌यो छे, तेमां आत्मानुं हित केम थाय तेनो विचार कर.
१६ वर्षनी वये श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–हे जीव! बहारमां लक्ष्मी–कुटुंब वगेरेमां तारुं
सुख नथी, तेनी ममताथी तो तुं मनुष्यभव हारी जईश; परमां सुख मानतां तारा
आत्मानुं सुख भुलाई जशे. माटे तुं विचार तो करे के आत्माने साचुं सुख केम थाय?
ने क्षणक्षणनुं भयंकर भावमरण केम मटे?
देहथी जुदो, जाणनार स्वरूपी हुं कोण छुं? देहनो नाश थवा छतां अविनाशी
रहेनारो हुं कोण छुं? एम अंदर शांतिथी, परभावोथी जुदो पडीने तारा आत्मानो
विचार कर, तो अंतरमां तने तारा आत्मानो अनुभव थशे. आत्माना