केम वांछे छे? आकाश जेवो जे महान अने निर्मळ छे, अतीन्द्रिय सुख सहित जे प्रगट
प्रकाशमान छे–एवा तारा आत्मामां तुं प्रीति कर. आवो आत्मा विचारवान डाह्या
पुरुषोने पोताना अंतरमां अनुभवगोचर थाय छे.
उपयोग जोडवो ते ज डाह्या–विचारवंत पुरुषोनुं कर्तव्य छे. जे बुद्धि अंतरमां आवा
आत्माने पकडे ते ज तीक्ष्ण बुद्धि छे. आवा तीक्ष्ण बुद्धिवंत जीवो अंतरमां पोताना
सुखसागरने देखे छे, –जेमां कोई कलेश नथी, जे आनंदथी ज भरेलो छे, अने
शुद्धज्ञाननो ज जे अवतार छे. रागनो अवतार के रागनी उत्पत्ति थाय एवो आत्मानो
स्वभाव नथी. आत्मा तो शुद्धज्ञाननो अवतार छे ने आनंदरूप अकृत छे. तेना
आनंदने बनाववो नथी पडतो, स्वयं आनंदस्वरूप ज छे. अरे जीव! तुं डाह्यो हो तो
आवा तारा आत्माने जाण. बहारनां बहु डहापण कर्या पण जो पोताना आत्माने न
जाण्यो, तो ज्ञानी कहे छे के तुं डाह्यो नथी, तारी बुद्धि तीक्ष्ण नथी; तीक्ष्णबुद्धि अने
डहापण तो ए ज छे के अंतरमां परभावोथी खाली, अने सुखथी भरेल एवा
चैतन्यनिधानने देखे.
आत्मामां उल्लसे छे. अरे, आवा आत्माने मुकीने संसारना कलेशने कोण वांछे? एवो
मूरख कोण होय के पोताना सुखना खजानाने छोडीने संसारनां कलेशमय दुःखने वांछे?
अहा, अंतरना चैतन्यनिधानने खोलीने संतोए बताव्या,