कर. तारुं चैतन्यपद आनंदमय छे ते राग–द्वेषथी रहित छे. अंतर्मुख थईने आवा
निजपदने नीहाळे ते सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान छे, भगवाने तो जगतने आवा
आनंदमय तत्त्वनी भेट आपी छे, ने ज्ञानी संतो ते बतावे छे.
तेओ तीर्थंकर भगवानना एलची (दूत) छे, तीर्थंकर भगवाननी पेढीमांथी लावेलो
चोकखो माल (एटले के वीतरागी मोक्षमार्ग) तेओ जगतने आपे छे के हे जीवो!
सुखनुं धाम एवो जे तमारो शुद्ध आत्मा छे तेमां अंतर्मुख उपयोगने जोडतां
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप आनंदमार्ग प्रगटे छे. मोक्षमार्ग कहो के आनंदमार्ग कहो,
ते आत्मामां समाय छे.
अंतरमां छे–ते तने बताव्युं; तेनो अंतरमां विचार कर तो तेनी प्राप्ति थाय.
तो सुखना सागरमां ज मग्न थाय छे, ने दुःखरूप संसारनी प्रीति अत्यंतपणे छोडे छे.
परनो प्रेम करतां तो पोताना आनंदनिधान लूंटाई जाय छे; माटे डाह्या–विचारवंत
जीवो सर्व परभावोनो प्रेम छोडीने पोताना सहज परम चैतन्यतत्त्वमां ज प्रीति करे छे.
जगतनी स्पृहा छोडीने पोताना निजतत्त्वनी ज मस्तीमां मशगुल रहे छे. एवा संतो
कहे छे के–
आनाथी बन तुं तृप्त, तुजने सुख अहो, उत्तम थशे
एवी नथी के भिन्न आत्मानुं भान भूलाई जाय–तेथी पूज्यपाद स्वामी कहे छे के–