Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
नाटक सुनत हिये फाटक खुलत है
समयसार–नाटक द्वारा शुद्धात्मानुं
श्रवण करतां हैयानां फाटक खुली जाय छे.
(समयसार नाटकनां अध्यात्मरसझरतां प्रवचनो (लेखांक ४) )
* * * * *
* सारमां सार एवो जे आत्मानो अनुभव तेनुं वर्णन आ समयसारमां करशुं.
मुक्तिपंथमां कारणरूप एवो आत्मानो अनुभव केम थाय ते ज मुख्य वात आ
समयसारमां कहेशुं. शुद्ध निश्चयनी कथनी कहेशुं अने तेनी साथे शुद्ध व्यवहाररूप जे
वीतरागीदशा–मोक्षमार्ग ते पण कहेशुं.
* आ समयसारमां अनुभवनुं वर्णन करवानुं कह्युं; तो पूछे छे के अनुभव कोने
कहेवो? ते अनुभवनुं लक्षण कहे छे–
वस्तु विचारत ध्यावतां मन पामे विश्राम;
रस स्वादत सुख ऊपजे, अनुभव एनुं नाम.
चिदानंद स्वरूप आत्मानुं साचुं स्वरूप लक्षमां लईने तेने विचारतां अने
ध्यावतां चित्त तेमां विश्रांति पामे छे, परभावोनी आकुळताथी छूटीने आत्माना
शांतरसमां ज्ञान एकाग्र थाय छे, अने ते शांतरसना स्वादथी परम अतीन्द्रिय सुख
थाय छे, तेनुं नाम अनुभव छे.
* आत्मानो आवो अनुभव प्रगट करवो ते आ समयसारनुं तात्पर्य छे, ते ज
धर्म छे, ते ज मोक्षमार्ग छे. ते अनुभवनो महिमा कहे छे–
अनुभव चिंतामणि–रतन, अनुभव छे रसकूप;
अनुभव मारग मोक्षनो, अनुभव मोक्षस्वरूप.