: २० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
संताडी दीधो हशे......अने तेना पुत्र जिनुने आप्यो हशे. –एम विचारी तेना उपर क्रोध
करीने निंदा करवा लाग्या. अने लखुने कह्युं के जा, तारा मित्र जिनुने बोलावी लाव!
लखुए डरतां डरतां कह्युं–बापुजी! मारो मित्र तो बहु संस्कारी छे; ते मारो हीरो
कदी ल्ये नहीं. (तेना मित्रना ऊंचा संस्कारनी तेना पर सारी छाप पडी हती.)
तेना पिताए धमकावीने कह्युं; –एना सिवाय हीरो बीजे क््यांय जाय नहीं; माटे
तुं जल्दी जईने एने बोलाव.
लखु तो ढीलो थईने जिनुना घरे चाल्यो....तेने देखतां ज जिनु तो आनंदित
थयो....आव मित्र! अत्यारे एकाएक क््यांथी?
लखु कहे–जिनु! तने मारा पिताजी बोलावे छे! माटे मारी साथे चाल.
बंने मित्रो चाल्या; रस्तामां जिनु कहे–मित्र! तुं ढीलो केम देखाय छे?
लखु कहे–भाई, शुं कहुं? मारो हीरो खोवाई गयो छे, तेथी तने बोलावेल छे.
त्यां जतांवेंत धनजी शेठे पूछयुं–जिनु! बोल, तने ‘हीरो’ मळ्यो छे?
निर्दोष जिनुना मनमां तो सवारे तेनी माताए बतावेला चैतन्य हीरानी वात
घोळाती हती, एनी धूनमां ने धूनमां तेणे कह्युं– हा, पिताजी! मारी माताए आजे ज
मने एक अद्भुत हीरो बताव्यो.
झवेरातनो हीरो तो एणे क््यांथी जोयो होय? एना मनमां तो चैतन्य हीरो
घोळातो हतो. पण धनजी शेठना मनमां तो पोतानो हीरो घोळातो हतो, एणे
चैतन्यहीरानी तो वात पण क््यांथी सांभळी होय? एटले तरत तेणे कह्युं– भाई जिनु!
ए हीरो अमारा लखुनो छे, माटे आपी दे!
जिनु कहे–बापुजी! ए तो मारो हीरो छे. तमारा लखुनो हीरो मारी पासे नथी.
पण मारी माता पासे आवो तो ते लखुनो हीरो पण बतावशे.
जिनुनी वात सांभळी लखुने थयुं के मारो हीरो एमने जडयो लागे छे, ने जरूर
मारो हीरो मने प्राप्त थशे. ते जिनु साथे गयो ने पूछयुं–जिनु! मारो हीरो क््यां छे?
मने बतावीश!