Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 24 of 69

background image
: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : २१ :
जिनु कहे– भाई, तारो हीरो मारी पासे नथी, तारी पासे ज छे, ने हुं तने ते
बतावीश.
लखु आश्चर्यथी कहेवा लाग्यो–हें! शुं मारो हीरो मारी पासे छे....जलदी बताव,
ए क््यां छे? आ वींटीमां तो ते नथी?
जिनु कहे–भाई, ए हीरो वींटीमां न होय, वींटी तो जड छे; तारो चैतन्यहीरो
तारा अंतरमां छे.
लखु कहे–एने कई रीते देखवो?
जिनु कहे–आंख मींचीने अंदर जो.
अंदर जोतां अंधारुं देखाय छे!
अंधारुं देखाय छे, –पण एने देखनारो कोण छे? देखनारो पोते शुं अंधारारूप
छे? के अंधाराथी जुदो छे?
ए तो अंधाराथी जुदो छे.
बस, अंधारा वखते पण जे तेने जाणे छे ते जाणनार पोते चैतन्य हीरो छे; ते
पोताना चैतन्य प्रकाशवडे बधाने जाणे छे. आवो चैतन्यप्रकाशी हीरो तुं ज छो. तारो
हीरो खोवाई नथी गयो, ए तो तारामां ज छे. अनंत गुणनां तेजे तारो चैतन्यहीरो
झळके छे.
जिननंदननी आवी सरस वात सांभळीने लक्ष्मीनंदन घणो खुशी थयो, अने
पोतानो चैतन्यहीरो पोतामां ज छे–ए जाणीने तेने अपूर्व आनंद थयो, चैतन्यहीरानी
पोतामां ज प्राप्ति थतां जड हीरानो मोह छूटी गयो. बंने मित्रो आनंदथी गावा
लाग्या–
हुं चैतन्य–हीरो छुं,
अनंत गुणे भरियो छुं;
ज्ञानप्रकाशे झळकुं छुं,
स्व–परने प्रकाशुं छुं.
जड–हीराथी जुदो छुं,
जीवथी कदी न जुदो छुं;