: २४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
पोरबंदरना प्रवचन–समुद्रमांथी
वीणेलां २०१ रत्नो
पोरबंदरमां ८२मी जन्मजयंति निमित्ते पू.
गुरुदेव पधार्या अने अगियार दिवस
रह्या....त्यारे समुद्र किनारे जे प्रवचनसमुद्र
उल्लस्यो ते प्रवचनसमुद्रमांथी २०१ रत्नो
वीणीने अहीं त्रण रत्नमाळा आपीए
छीए....तेमां झलकती चैतन्यप्रभा जिज्ञासुओने
आनंदित करशे. (–ब्र. ह. जैन)
* * * * *
१. जेनाथी सुख थाय ने दुःख टळे ते भावने मंगळ कहे छे.
२. आत्मा पोते अतीन्द्रिय सुखस्वरूप छे; ते त्रिकाळ मंगळ छे; एवा आत्मानी
वात प्रेमथी सांभळवी ते पण द्रव्य–मंगळ छे; अने अंतरमां ते समजीने
सम्यग्दर्शनादि प्रगट करतां अतीन्द्रिय सुख पोतामां अनुभवाय छे ते
भावमंगळ छे.
३. आत्मा अनंत छे, ते दरेक आत्मामां सर्वज्ञस्वभाव भर्यो छे.
४. आत्माए जगतना बीजा पदार्थोनां मूल्य कर्या, पण पोते पोताना स्वभावना
मूल्यने जाण्युं नहीं.
प. शरीरनां मूल्य वडे आत्मानुं मूल्य थाय नहीं. शरीर तो अचेतन छे, ते
अजीवपणे रह्युं छे, ने भगवान आत्मा चेतनपणे सदा रह्यो छे.
६. राग–द्वेषनी वृत्तिओ वडे पण जीवनी किंमत थती नथी; जीव पोते पवित्र
आनंदरूप छे, ने पुण्य–पापनी लागणीओ अपवित्र अने दुःखरूप छे. एटले