: २६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
१७. एककोर ज्ञान महिमावंत भगवान आत्मा, बीजीकोर राग–द्वेष–मोहरूप अज्ञान
भावो, –ए बंनेनी भिन्नता ओळखे त्यारे जीवने मोक्षमार्ग प्रगटे, अने त्यारे
तेने आस्रवोनुं कर्तापणुं छूटे.
१८. ओछी मूडीवाळा गरीबने पण कोई लक्ष्मीवान कहे तो ते ना नथी पाडतो, पण
खुशी थाय छे, केमके लक्ष्मीनो प्रेम छे. तो अहीं तो आत्मा पोते खरेखर अनंती
चैतन्यलक्ष्मी वाळो छे, तेने भगवान कहे छे के हे जीव! तुं गरीब नथी, तुं मेलो
के रागी नथी, तुं तो पूर्व आनंद अने सर्वज्ञतारूप वैभवथी भरेलो छो. तेनो
प्रेम लावीने हा पाड.....ने अंतरमां तेने अनुभवगम्य कर. अरे, पोताना
आत्माना वैभवनी कोण ना पाडे?
१९. अहा, चैतन्यनी संपदाना महिमानी शी वात! लोकोने अणुबोंब
हाईड्रोजनबोंब वगेरे जडशक्तिनो विश्वास अने महिमा आवे छे. पण पोते
चैतन्यनी कोई अचिंत्य शक्तिवाळो छे, तेनो विश्वास अने महिमा करतां
अतीन्द्रियसुख अनुभवाय छे.
२०. अरे, आवो मनुष्यअवतार, तेमां आत्माना सत्यस्वरूपने सांभळवानो योग,
अने आत्मानो अनुभव करवानो अवसर, –आवो अवसर जो चूकी जईश तो
चार गतिना चकरावामां फरी क््यारे आवो अवसर मळशे?
२१. आत्मा पोते अंतरमां शुं चीज छे तेने जाणवानी अने अनुभववानी तुं दरकार
कर.
२२. क्रोधादि विकार भावोमां जेने दुःख लागे ते तेनाथी भिन्न आत्माने ओळखवानो
उद्यम करे; अने भिन्न आत्माने ओळखीने ते सुखी थाय.
२३. भाई, तुं आत्मा छो, आत्मा कर्ता थईने शुं करे? के ज्ञानकार्यने करे–ए तेनुं
साचुं काम छे; राग पण तेनुं कार्य खरेखर नथी, ने जड शरीरमां काम तो
आत्मामां कदी नथी; तेनो कर्ता आत्मा नथी.
२४. ज्ञानने भूलीने अज्ञानथी जीव पोताने जडनो तथा रागनो कर्ता माने छे, ते
कर्ताबुद्धिने लीधे संसार अने दुःख छे. ज्ञानमां तेनो अभाव छे. ज्ञान थतां
रागादिनुं कर्तृत्व छोडीने आत्मा मोक्षने साधे छे. ते ज्ञान केम थाय? तेनी आ
वात छे.