Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : २७ :
२प. धर्मी जाणे छे के हुं तो आनंदनुं धाम छुं. आनंदना धाममां दुःख केवुं? अज्ञान
भावो केवा?
२६. आत्मा चेतनधाम छे. ते स्वयं स्व–परने चेतनारो छे; अने क्रोधादि
आस्रवभावो तो चेतना वगरनां छे, तेओ पोताने के परने पण जाणतां नथी.
ते क्रोधादिने कोण जाणे छे? –के तेनाथी जुदो पडेलो एवो चेतनभाव ज तेने
जाणे छे. आ रीते चेतनाने अने क्रोधने विरुद्धपणुं छे.
२७. चेतना ते आत्मानो अविरुद्धस्वभाव छे; ए पुण्य–पाप वगेरे भावो आत्माथी
विरुद्ध स्वभाववाळा छे. भगवान! ताराथी विरुद्ध जे भाव होय ते तने हितनुं
कारण केम थाय? न थाय. पुण्यराग ते कांई मोक्षनुं कारण नथी. , ते तो
संसारनुं ज कारण छे.
२८. ४प लाख जोजनना अढी द्वीपमांथी दरेक छ मास ने आठसमये ६०८ मनुष्यो
मोक्षने पामे छे. तेओ कई रीते मोक्ष पामे छे? –आत्मामां अनंत स्वाधीन
शक्तिओ छे, तेने साधी–साधीने मोक्ष पामे छे.
२९. आत्मानी शक्तिओनुं अद्भुत वर्णन आ समयसारमां कर्युं छे; आत्मानो
अद्भुत वैभव संतोए बताव्यो छे. आत्मा पोताना चैतन्यजीवन वडे जीवनारो
छे. पोतानी चैतन्यशक्तिथी आत्मा सदा जीवतो छे. आव चैतन्यजीवनने जाणे
ते अमरपद पामे.
३०. चैतन्यशक्तिथी जीवनारो आत्मा छे, ते कदी मरतो नथी. शरीर वगर आत्मा
जीवे छे, राग वगर जीवे छे, पण चेतना विना ते एक क्षण पण जीवे नहीं.
३१. शरीर अने ईंद्रियो वगेरे ते कांई आत्माने जीववाना खरा प्राण नथी; एना
वगर जीवनारो आत्मा छे, ते पोताना चैतन्यरूप भावप्राणथी ज जीवनारो छे.
३२. अरे जीव! तारा जीवनने तो तुं जाण. जीवत्वादि निज शक्तिने जाणतां तने
परम सुख थशे.
३३. आत्माना स्वभावनी पोतानी आ वात छे. परभावनो ज परिचय होवाथी,
अने स्वभावनो अभ्यास न होवाथी आ वात सूक्ष्म लागे छे. ईन्द्रियथी के
रागथी समजाय तेवुं स्वरूप नथी तेथी ते सूक्ष्म तो छे, पण अंदरना अभ्यास
वडे पोते पोताने स्वानुभवगोचर थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे.