Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
३प. रागमां एवो स्वभाव नथी के पोते पोताने जाणे. राग पोते रागने नथी
जाणतो, ने आत्माने पण नथी जाणतो–केमके तेनामां चेतनस्वभाव नथी.
३६. चेतनस्वभावी आत्मा ज एवो छे के स्वयं पोते पोताने जाणे छे, ने रागने पण
जाणे छे, पोते पोताने जाणवा माटे बीजा कोईनी जरूर पडती नथी. –आवो
चैतनस्वभाव ते आत्मा छे.
३७. क्रोधादि परभावोने जाणवा माटे तो तेनाथी जुदा एवा बीजानी (एटले के
ज्ञाननी) जरूर पडे छे, केमके क्रोधादिभावोमां स्व–परने जाणवानो स्वभाव
नथी.
३८. आ रीते आत्मा अने क्रोधादिनुं अत्यंत भिन्नपणुं छे. ते क्रोधादि भावो
आत्माना चेतनस्वभावमां प्रवेश करतां नथी, बहार ज रहे छे.
३९. रागादि भावो (अशुभ के शुभ बधाय) चेतनस्वभावथी बहार छे तेथी तेमने
जडस्वभाव कह्या छे. ते जडस्वभावरूप रागादि भावोनुं कर्तृत्व तारा
चेतनस्वभावमां केम होय?
४०. अरे, अनादि अज्ञानथी, ज्ञानने अने रागादिने एकमेक मानीने जीव पोताने
रागादिरूपे ज अनुभवतो थको तेनो कर्ता थाय छे. आ अज्ञानजनित
कर्तापणाथी ज कर्मो बंधाय छे.
४१. चेतनस्वभावमां वळेलुं ज्ञान, के जे ज्ञानमां रागादिनो सर्वथा अभाव छे, ते
ज्ञान वडे धर्म थाय छे ने कर्म अटके छे.
४२. धर्म कहो के भेदज्ञान कहो, के आत्मानुं वीतरागी सुख कहो, ते अपूर्व चीज छे.
अंदरमां लक्षगत करीने तेनो प्रयोग करवा जेवो छे.
४३. आ चैतन्यतत्त्व तो अचरजनी चीज छे. एनो अनुभव पण परम आनंदकारी
छे. रागवडे के ईंद्रियज्ञान वडे एनो अनुभव थतो नथी.
४४. शरीरनी क्रियामां के रागमां मळी जाय एवो सोंघो आत्मा नथी. आत्मा तो
आत्मा तरफ झुकेला अतीन्द्रियज्ञान वडे ज प्राप्त थाय छे. आ सिवाय बीजी
रीते आत्मानो धर्म लेवा जाय तो तेने धर्म नहीं मळे. एनी महेनत नकामी
जाशे ने संसारभ्रमण थाशे.