Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : २९ :
४प. अरे, बापु! आत्माना स्वभावनी आवी वात मळवी दोह्यली छे.....तुं चेती जा!
बापु, तारा सुखना मारगडा अंदरमां छे. अंदर नजर करीने शोध. ज्यां छे
त्यांथी मळशे; ज्यां नथी त्यां शोध्ये मळशे नहीं.
४६. रेतीमां जे गरम हवानां मोजां छे तेने पाणी मानीने मृगलां दोडे छे, पण कांई
ए झांववाथी ते तरत छीपे? ना; तेम भगवान आत्मा पोताना अंतरमां ज
सुखनुं सरोवर भरेलुं छे तेने छोडीने दूरदूर रागमां ने ईं्रद्रियविषयोमां सुख
लेवा दोडे छे.....पण अरेरे! ए झांझवामांथी एने साचुं सुख क््यांथी मळे?
आनंदनुं सरोवर तो पोते ज छे.
४७. हे जीव! बाह्यविषयो तरफ दोडवानुं छोडीने तारा चैतन्यसरोवरमां तुं आव,
त्यां तने आत्मानुं साचुं सुख मळशे.
४८. अंदर आनंदना सरोवरमां जवाना रस्ता जगतथी कांईक जुदा छे; संतोना ए
मारग मोंघा लागे के सोंघा–पण सत्यमार्ग ए एक ज छे. सुखी थवुं होय तो
संतोए बतावेलो आ राग वगरनो अंदरना ज्ञाननो मार्ग ले. आनाथी सोंघो
के मोंघो कोई बीजो मार्ग ज नथी.
४९. धर्म करे त्यां अंदरथी आत्माने आनंदनो स्वाद आवे, ने पोताने तेनी खबर
पडे.
प०. वीतरागी संतोना नादे आत्मा डोली ऊठे छे.....ने स्वभावना पंथे चडी जाय छे.
जेम अफीणना बंधाणीने ‘चडयो.....चडयो.....’ कहेतां नशो चडे छे, तेम
आत्माने साधवाने माटे जे बंधाणी थयो छे, आत्माने साधवानी जेने धगश
छे–तालावेली छे, तेने संतो आत्मानो उल्लास चडावे छे के अरे जीव! तुं जाग रे
जाग.... तारा चैतन्यमां अपूर्व ताकात छे तेने तुं संभाळ! केवळज्ञानना भंडार
तारामां छे. –एम संतोना नाद सांभळतां मुमुक्षुनो आत्मा उल्लासथी जागी
ऊठे छे ने उपयोगने अंतरमां वाळीने आत्मानो अनुभव करे छे. (पण वच्चे
रागथी धर्म थवानुं माने तो मोक्षने साधवानो पावर ऊतरी जाय छे; रागनी
रुचि करे तेने कदी मोक्षने साधवानो उल्लास ऊछळे नहीं. चैतन्यनी रुचिनो
पावर चडे त्यां रागनी रुचि रहे नहीं.)
प१. रागथी धर्म मनावे तेमां तो रागनी पुष्टि छे. जीवने रागनी रुचि तो अनादिनी
छे, ते रागना पोषणनो उपदेश ज्ञानी केम आपे? ज्ञानी तो रागथी तद्न