: ३० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
जुदो चेतनस्वभाव बतावे छे. एवा चेतनस्वभावनो अनुभव ते सम्यग्दर्शन
छे, ते धर्म छे, ते मोक्षमार्ग छे. आ सिवाय बीजा उपाये मोक्षमार्ग थतो नथी.
प२. सम्यक्प्रकारे आत्मा पोताना ज्ञानस्वभावरूपे परिणमे तेने ‘समयसार’
कहेवाय छे, ने तेनुं वाचक आ समयसार–शास्त्र छे. शब्द जुदो छे ने तेना
वाच्यरूप पदार्थ जुदो छे; ज्ञानमां ते बंनेने जाणवानी ताकात छे.
प३. नमो अरिहंताणं ते पण आत्माना गुणोनुं सूचक छे. ज्ञानस्वभावी आत्मानुं
भान करीने जेणे केवळज्ञानादि शुद्धता प्रगटी छे अने राग–द्वेष–मोहरूप अरिने
हण्या छे–एवा शुद्धआत्मा ते अरिहंत छे. पांचे परमेष्ठी पद ते आत्मानी
शुद्धतामां ज समाय छे, आत्मानी शुद्धदशानां ते नाम छे. दरेक आत्मा शुद्ध दशा
प्रगट करीने साधु–अरिहंत ने सिद्ध थई शके छे.
प४. धर्मी जीवने पंचपरमेष्ठी प्रत्ये प्रेम–भक्ति–बहुमान होय छे; तेनी वंदना–पूजानो
भाव ते शुभभाव छे. पण धर्मी ते शुभथीये पार पोताना आनंदस्वरूपने जाणे
छे.
पप. शास्त्रमां राग घटाडवा ने धर्मप्रेम वधारवा माटे दाननो एवो उपदेश आपे के–
अरे जीव! पूर्व तारा गुणमां विकृति थतां राग थयो ने पुण्य बंधाया ते पुण्य
फळमां तने आ संपदा मळी, तो धर्मनी प्रभावनाना कार्यमां तुं तेनो सदुपयोग
कर. जो सत्नुं बहुमान अने रागनी मंदता पण नहि कर ने लोभनी तीव्रता
पूर्वक मरीश तो दुर्गतिमां जईश.
प६. धर्म अने आत्मानो अनुभव तो ते मंदरागथी पण पार छे, ज्ञानस्वभाव
रागथी एवो निरपेक्ष छे के जेना अनुभवमां रागनो स्पर्श नथी. शुभराग वडे
आत्मा अनुभवमां आवी जाय–एवो नथी.
प७. आत्मानो एवो निराकुळस्वभाव छे के ते कदी दुःखनुं कारण थतो नथी; ने
रागादि तो दुःखनां ज कारण छे. –ए रीते बंनेनुं स्वरूप जुदुं छे. आवी
भिन्नताना भान वडे ज रागथी जुदो आत्मा चैतन्यस्वरूपे अनुभवमां आवे
छे.
प८. अनुभवमां आत्मा स्वयं पोते पोताने स्पष्ट प्रकाशे छे; आत्माने पोताने
प्रकाशवामां–जाणवामां कोई बीजानी, रागनी ईन्द्रियनी के बहारनां जाणपणानी