: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ३१ :
ओशीयाळ नथी. स्वयं पोते पोतानी शक्तिथी ज पोताने प्रकाशे–एवो स्वभाव छे.
प९. भगवान तारा स्वभावनी वात होंशथी तें कदी सांभळी नथी. देवो पण
स्वर्गमांथी जेनी वात सांभळवा अहीं मनुष्यलोकमां आवे छे तेना महिमानुं शुं कहेवुं?
आवा चैतन्यनी वार्ता सांभळता तेनी प्रीति जेने जागी ते जीव अल्पकाळमां जरूर
मोक्ष पामे छे.
६०. अरे, अंदर आनंदघन आत्मा छे तेने स्पर्शवा माटे ऊमळको तो लाव!
सिंह ने हाथी जेवा प्राणीओ पण जे सांभळतां अंदर चैतन्यना तेजनी वीजळी
प्रगटावीने पोताने परमात्मापणे अनुभवी ल्ये छे.....एवी आ वात महाभाग्ये तने
सांभळवा मळी छे. बापु! आत्मानुं हित करवुं होय तो अंदर ऊतरीने आत्मानुं स्वरूप
समज.
६१. पतिव्रता सती जे पतिने परणी ते सिवाय बीजाने चाहे नहीं; तेम
अंतरमां जेणे पोताना चैतन्यपति साथे प्रीतलडी बांधी छे ते धर्मी जीव बीजा कोई
परभावनो प्रेम करता नथी. आत्मानो प्रेम होय ने रागनो–पुण्यनो पण प्रेम राखे–
एम बनी शके नहीं.
६२. आत्मा तो अतीन्द्रिय–सुखनुं धाम छे ने रागादि तो दुःखनुं धाम छे, तेमने
एकबीजा साथे कारण–कार्यपणुं नथी; बंनेने अत्यंत जुदाई छे.
६३. जीवना भाव त्रण प्रकारना छे–अशुभ–पाप; शुभ–पुण्य; अने ते बंनेथी
पार एवो शुद्ध–वीतरागभाव ते धर्म, आमां पुण्य अने पापना भाव जीवे
अनंतकाळथी कर्या छे, पण आत्मानो चैतन्यस्वभाव तेनाथी जुदो छे, ते स्वभावनी
ओळखाण जीवे कदी करी नथी. एटले के ज्ञानमय शुद्धभाव जीवे कदी कर्यो नथी. एवो
शुद्धभाव, राग वगरनो भाव प्रगट करवो ते धर्म छे.
६४. अनादिकाळथी शुभ–अशुभ राग करीने संसारमां रखडयो छे, पण
भेदज्ञानवडे तेनाथी छूटीने जीव वीतरागभाव करी शके छे. ज्यारथी सम्यग्ज्ञान थयुं
त्यारथी जीव पोताने रागथी जुदो शुद्धचैतन्यरूप अनुभवे छे.
६प. पुण्यना फळमां स्वर्गादि मळे, पापना फळमां नरकादि मळे, पण ए बंनेथी