Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
पार शुद्ध ज्ञानभाव वडे ज मोक्ष सधाय छे. अज्ञानी लोको पुण्यवडे मोक्ष साधवा
मांगे छे, पण ए तो संसारनुं कारण छे.
६६. जेने अंतरमां धर्म प्रगटे एटले के शुद्ध–ज्ञान–आनंदनो अनुभव थाय तेने
पोताना मोक्षनी खबर पडे के अमे हवे मोक्षना पंथमां भळ्‌या छीए.
६७ प्रश्न:– अत्यारे पंचमकाळमां आवो मोक्षमार्ग थई शके?
उत्तर:– हा; अत्यारे पण आत्मानो अनुभव अने मोक्षमार्ग थई शके छे; एवो
अनुभव करनारा जीवो अत्यारे पण अहीं छे.
६८. आत्माना स्वानुभवनो जे आनंद छे तेने ज्ञानी ज जाणे छे; बहारना पदार्थोनी
उपमावडे, वाणीवडे के कल्पनावडे ते अनुभवना आनंदनो ख्याल आवी शके
नहीं.
६९. चैतन्यना अनुभवनो जे मार्ग, –तेने जगतनी साथे के रागनी साथे मेळवी
शकातो नथी; ए मार्ग तो अंदर चैतन्यतत्त्वना सत्त्वमां समाय छे.
७०. अहा, सिद्धसमान पोतानुं स्वरूप जे अनुभवमां देखाय, ते अनुभवनी शी
वात! आवा अनुभव वगर मोक्षना मार्गनी एटले के धर्मनी शरूआत न थाय.
गृहस्थपणामां रहेला धर्मीनेय आवो अनुभव थई शके छे.
७१. अरे, आ हाड–मांसना माळामां रहेवुं–ए केम मटे? अने अशरीरी सिद्धपद केम
पमाय? –एवी चैतन्यकळा आ समयसारमां बतावी छे.
७२. धर्मने माटे–सुखने माटे पहेलांं तो आत्मा अने आस्रवो वच्चेनो तफावत
ओळखीने तेमने अत्यंत जुदा जाणवा जोईए. जुदापणुं जाणीने ज्ञानस्वरूप
आत्मा साथे एकतारूप, अने रागादि आस्रवोथी भिन्नतारूप ज्ञाननुं परिणमन
थाय, ते धर्म छे–ते सुख छे–ते मोक्षनो पंथ छे.
७३. रागादि भावो ते कांई चैतन्यनां किरण नथी. चैतन्यना किरणमां राग न होय;
राग तो अंधकार छे, तेमां चैतन्यप्रकाश नथी. आ रीते प्रकाश अने अंधकारनी
जेम, ज्ञान अने रागने जुदाई छे.
७४. भाई, आ संसारनी रझळपटीना दुःखथी आत्माने छोडाववा माटे हवे तो तुं