: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ३३ :
तारी दया कर. तारा आत्मानुं दुःख केम मटे ने सुख केम थाय, तेनो तो विचार
कर.
७प. चैतन्यभगवाननो जेने पोतामां विश्वास आवे तेने पुण्य–पाप–राग–द्वेषमां
हितबुद्धि रहे नहीं. चैतन्यनी जे विरुद्ध छे तेने ते हितरूप केम माने?
७६. रागने हितरूप मानवो तेमां तो रागवगरना चैतन्यभगवाननो आदर थाय छे,
ते ज अनंत क्रोधरूप मिथ्यात्व छे.
७७. जे भावने पोताना चैतन्यतत्त्वथी विरुद्ध जाण्या तेना कर्तृत्वनी बुद्धि रहेती
नथी, एटले धर्मीने आस्रवोनुं कर्तृत्व छूटीने ज्ञानभावनुं ज कर्तृत्व रहे छे. –
आवो ज्ञानभाव ते मोक्षनुं साधन छे. तेना वडे ज्ञानी ओळखाय छे.
७८. आत्माना ज्ञान वगर, जराक रागथी के दया–दानथी, के देहनी क्रियाथी मोक्ष
थवानुं अज्ञानी–कुगुरुओ बतावे छे, ने अज्ञानी जीवो तेनाथी छेतराय छे, –पण
ए तो संसारमां डुबे छे.
७९. भाई, राग तो दुःखदायक छे; तारा चैतन्यमां राग केवो ने दुःख केवुं?
चैतन्यतत्त्व ते तो आनंदनो सागर छे; तेनो अनुभव, तेना तरंगो तो
आनंदरूप छे.
८०. जे जीव खरेखर आ रीते आत्मस्वभावने अने रागने जुदा ओळखे छे ते
रागादि परभावोथी पाछो फरे छे अने आत्मस्वभावने ज स्वपणे अनुभवतो
थको ज्ञानघनरूप थाय छे. आनुं नाम भेदज्ञान छे, ने ते मोक्षमार्ग छे.
८१. आत्माने केम देखवो? –के अंदर अंधारा वखते पण ‘आ अंधारुं छे ’एम जे
जाणे छे ते जाणनार तत्त्व पोते अंधारारूप नथी, ते तो चैतन्यप्रकाशरूप छे.
आवो चैतन्यप्रकाश जेनामां छे ते पोते आत्मा छे. आ रीते चैतन्यप्रकाश द्वारा
आत्माने रागथी जुदो देखावो.
८२. चैतन्यप्रकाशवडे आत्माने रागथी तद्न जुदो अनुभवमां लीधो, त्यां भेदज्ञान
वडे धर्मीना अंतरमां आनंदनो अवतार थयो छे.
आवा आनंद–अवतारी कहानगुरुने नमस्कार हो.
*(प्रवचन समुद्रना २०१ रत्नोमांथी ८२ रत्नोनी पहेली रत्नमाळा अहीं पूरी थई.)*