Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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* वी त रा ग मा र्ग ना सा थी दा र *
(संपादकीय)
ज्ञानसमुद्र उल्लसे छे.....ए सम्यक्रत्नो आपे छे.....
आत्मानी साधनामय जेमनुं जीवन छे, अने सदाय आपणने आत्मसाधनानी
ज प्रेरणा जेओ आपे छे–एवा पूज्य श्री कहानगुरुनो मंगल–जन्मोत्सव एटले
आत्मानी साधनानो उत्सव.
एवा गुरुदेवनी ८२मी जन्मजयंतिनो उत्सव हमणां पोरबंदरमां समुद्रकिनारे
हजारो भक्तोए आनंदथी ऊजव्यो....गुरुदेवनी मंगल छायामां बेठा होईए त्यारे जाणे
के परमगंभीर चैतन्यसमुद्रना किनारे ज बेठा होईए–एवा शीतळ आनंदना वायरा
आवे छे. ठेठ किनारा सुधी लावीने गुरुदेव आपणने कहे छे के–जो भाई! आ
चैतन्यदरियो तारी सामे ज उल्लसी रह्यो छे, हवे तेमां तुं मग्न था! एनी गंभीरतानुं
माप तुं जाते अंदर ऊतरीने कर.
सवारे–बपोरे एकेक कलाक शांतरसथी उल्लसता प्रवचन समुद्रनी शीतळ
लहेरीओनो स्वाद चाख्या पछी, आखाय चैतन्यसमुद्रने देखवानुं दिल थाय छे; पछीए
ऊंडा समुद्र सिवाय कांठानां कादवमां चेन पडतुं नथी. अहा! गुरुदेव! आप पोते तो
दरिया जेवा गंभीर छो, ने आप जे तत्त्व बतावी रह्या छो ते पण दरिया जेवुं परम
गंभीर छे. दरियामां मेल समाय नहि, दरियो स्वयं उल्लसीने मेलने बहार फेंकी दे छे,
तेम आ चैतन्य दरियामां परभावरूपी मेल प्रवेशी शकता नथी. आनंदथी उल्लसतो
चैतन्यदरियो परभावोना मेलने बहार फेंकी दे छे. आनंदना आवडा मोटा निर्मळ
दरियाने आत्मामां ज समावी देनार, अने ए दरियानुं मथन करी करीने सम्यक्त्वादि
अनंत रत्नोने प्राप्त करावनार हे गुरुदेव! आपे दरियाथी पण महान एवो चैतन्यदेव
अमने देखाडयो. आपना अवतारथी आ भरतक्षेत्रना जीवोने पोतामां ज परमात्मानी
प्राप्ति थई. आजे अमने अपार आनंद छे...अपार उल्लास छे....आपना मंगल–
आशीषथी वीतराग मार्गमां सदाकाळ आपनी साथे ज रहेशुं, –एवा आनंद–
उल्लासपूर्वक आपश्रीने अभिनंदीए छीए–अभिवंदीए छीए.