Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ३५ :
९१. केवो निर्णय करे छे? –हुं एक आत्मा ज्ञानदर्शनस्वरूप छुं अने मारा
स्वानुभवमां हुं सदाय प्रत्यक्ष छुं. अन्य कोई भावो जरा पण मारां नथी.
९२. ईंद्रियज्ञान एटले के परोक्षपणुं ते आत्मानो स्वभाव नथी. ईंद्रियज्ञानवडे तेने
जाणी न शकाय. ईंद्रियथी जुदो पडी, अंतर्मुख अतीन्द्रिय उपयोगवडे आत्मा
पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय छे.
९३. अंतरमां मारो उदय सदाय विज्ञानघन स्वभावरूपे ज छे. मारो आत्मा
अनादिअनंत सदाय चैतन्यपणे ज रहेलो छे; एनाथी विपरीत कोईपण बीजा
भावो ते हुं नथी. –आम आत्मानो निर्णय करवो.
९४. कर्ता–कर्म–आधार वगेरे छ कारको छे; ने जडनां कारको जडमां छे. आत्मानां
कारको आत्मामां छे. शरीरनुं कर्तापणुं–कर्मपणुं के आधारपणुं आत्मामां नथी;
आत्मा शरीरनो कर्ता नथी.
९प. जे रागादि विकारभावे छे तेनां कारको पण ज्ञानस्वरूप आत्मामां नथी.
आत्माने स्वभावथी ते रागादि भावनुं कर्तापणुं नथी, आत्मा तेनो आधार
नथी. तेनाथी रहित होवाथी मारो आत्मा शुद्ध छे–एम धर्मी पोताने जाणे छे.
९६. हवे, मारी निर्मळ पर्यायनो हुं कर्ता, ते मारुं कार्य, हुं तेनो आधार–एवा जे
भेद, तेनाथी पार शुद्ध अनुभूतिस्वरूप आत्मा छे; शुद्ध आत्मानी अनुभूतिमां
कोई भेद–विकल्प नथी. आवी अनुभूतिस्वरूप हुं छुं तेथी हुं शुद्ध छुं. कोई अशुद्ध
भाव मारामां नथी. –आवी विधिवडे आत्मा आस्रवोथी छूटो पडे छे एवो छूटो
पडे छे के रागनो एक अंश पण कदी पोतापणे भासतो नथी, पोते सदा ज्ञानरूप
ज रहे छे.
९७. जुओ, आवा चैतन्यसमुद्र भगवान आत्माना अनुभव विना कोई आस्रवोथी
छूटवा मांगे तो ते छूटी शके नहीं. आस्रवोथी भिन्न चैतन्यमात्र आत्माने
अनुभवमां लेवो ते ज आस्रवथी छूटवानी रीत छे.
९८. मोक्षमार्गी संतो कहे के अमे आवो शुद्ध अनुभव कर्यो छे ने तमे पण आवो
अनुभव करो. ते अनुभव करवानी विधि अहीं बतावीए छीए.
९९. अंदर पोतामां भेद पाडीने हुं कर्ता, ज्ञान मारुं कार्य–ईत्यादि विकल्प ऊठे, ते