: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ३९ :
छूटीने निर्विकल्प अनुभवमां भगवान आत्मा पोताना साचा स्वरूपे प्रसिद्ध
थाय छे.
१२७. आत्मानो आवो अनुभव थतां धर्मीने पोताना आत्मामांथी साक्षी आवी जाय
छे के अमारो आत्मा हवे मोक्षनी नजीक आव्यो, संसारसमुद्रनो किनारो हवे
अत्यंत नजीक आवी गयो–आम पोताने पोतानी खबर पडी जाय छे.
१२८. आत्मानुं साचुं स्वरूप ज्यां पोताना अनुभवमां आवी गयुं त्यां तेनाथी विरुद्ध
कहेनाराने ते कदी माने नहि; स्वभावथी विपरीत कोई परभावने ज्ञानमां पकडे
नहीं. एटले ज्ञान समस्त परभावथी छूटुं ने छूटुं ज्ञानमात्ररूपे ज रहे छे. ने
आवुं ज्ञान थतां जीवने आस्रव थतो नथी, ते अल्पकाळमां मुक्त थाय छे.
१२९. ज्ञानने अने रागद्वेषमोहने एकपणुं तो छे नहीं, विपरीतपणुं छे; एटले जे
आत्मा ज्ञानरूपे परिणम्यो ते रागद्वेषमोहरूपे थतो नथी. –आवा ज्ञानने ज
भेदज्ञान कहे छे; ते भेदज्ञान धर्म छे ने ते ज मोक्षनुं कारण छे.
१३०. जीवे अत्यारसुधी भेदज्ञान न कर्युं ने पोताने रागरूपे ज मान्यो, ते जीवनी
पोतानी भूल छे; कोई बीजाए ते भूल करावी नथी; अने बीजो ते भूल
मटाडनार नथी. जीव पोते भेदज्ञानवडे शुद्धआत्मानो अनुभव करीने ते भूल
मटाडे छे.
१३१. भूल ते जीवनो असली स्वभाव नथी एटले ते मटी शके छे. अने अनादिनी
भूल चाली आवी छतां जीवनो असली ज्ञानानंद स्वभाव मटी गयो नथी.
ज्यारे जागीने जुए त्यारे आत्मानो एवो ने एवो परिपूर्णस्वभाव छे.
१३२. बापु! तारुं तत्त्व तारामां ज छे, क््यांय खोवायुं नथी. तें रागमां सर्वस्व मान्युं
एटले तारा साचा तत्त्वने तुं भूल्यो. हवे राग अने ज्ञानना लक्षणनी भिन्नता
वडे बंनेने भिन्न जाण; तो तारुं तत्त्व तने स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष थशे, रागथी जुदी
ज्ञानअनुभूति थशे.
१३३. तारुं साचुं अस्तित्व केवुं छे? केवडुं छे? अंदर केटली ताकात ने केटला गुणो
भर्या छे? तेने लक्षमां ले. ज्ञानादि अनंत स्वभावथी पूरुं जे महान अस्तित्व
छे तेमां निश्चल थतां ज समस्त परभावनी पक्कड छूटी जशे.....एटले के
आस्रवरूप संसार छूटी जशे.....