Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 46 of 69

background image
: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ४३ :
द्वेष, क्रोध पलटीने मानादि–एम ते अनित्य छे, ने चैतन्यभाव तो सदा
चैतन्यपणे स्थिर रहेनार छे. आ रीते आत्मा रागादिथी जुदो चैतन्यभावरूप
छे.
१प७. जे क्षणे आत्मा आवा स्वभावपणे पोताने अनुभवे छे ते ज क्षणे तेने
रागादिथी भिन्नता थाय छे. स्वभावना चेतनस्वादमां रागना स्वादनी नास्ति
छे. –सम्यग्दर्शन थतां आवो स्वाद आवे छे.
१प८. हे जीव! तुं आवो अनुभव कर! तने आनंद आवशे, अने तारां जन्ममरण
छूटी जशे.
१प९. रागादि भावो के जे अशुची छे, चैतन्यथी विरुद्ध छे अने अधु्रव छे, ते
रागादिभावोनो आश्रय चैतन्यस्वभावी आत्मा नथी, तेनो आश्रय तो जड
कर्मोनो उदय छे. कर्मोनो आश्रय छोडीने चैतन्यस्वभावनो आश्रय करतां ते
रागादिभावो रहेता नथी, माटे ते आत्मानो स्वभाव नथी.
१६०. आ रीते ज्ञान अने रागनी भिन्नतानो जे निर्णय करे ते ज ज्ञानरूप थईने
परभावथी छूटे.
१६१. मोटो दरियो जणाय छे–ते कोनी सत्तामां जणाय छे? चैतन्यनी सत्तामां ते ज्ञान
थाय छे. तो ते ज्ञानसत्ता केवी महान छे–एने अंतरमां देख.
१६२. चैतन्यसत्ता न होय तो कांई ज देखाय नहीं. बधायने जाणनारी चैतन्यसत्ता
बधायथी जुदी, महान सामर्थ्यवान छे. पोते पोतानी चैतन्यसत्ताने ओळखे तो
ज साचुं ज्ञान थाय.
१६३. लोकोमां कहेवाय छे के ‘सरखे सरखानी जोडी शोभे’ तो अहीं आत्मामां
सरखेसरखानी जोडी शोभे–एटले शुं? के ज्ञानने अने रागने सरखापणुं नथी,
एमने तो कजोडुं छे, एटले के ज्ञान रागनुं स्वामी थईने तेने करे–ए शोभतुं
नथी. चैतन्यस्वरूप आत्मा पोते ज्ञाननो ज स्वामी थईने ज्ञानभावने ज करे, –
ए शोभे छे, ए आत्मानुं साचुं स्वरूप छे.
१६४. भाई, तारो सरखो परिवार तो सम्यग्दर्शनादि छे, के जे स्वजात छे–ते समकित
साथे आत्मानी सगाई बांध, त्यां अनंत गुणना परिवार साथे तारे साचुं
सगपण बंधाशे.