: ४४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
१६प. जगतमां पैसा कमावा माटे अनेक प्रकारनी कुयुक्ति लडावे छे, तेमां तो पाप छे;
तो हे भाई! आ तारा चैतन्यनी कमाणीनो अवसर छे, तेमां चैतन्यनी कमाणी
केम थाय? तेनो तो विचार कर. एना विचार साथेना रागथी पण ऊंचा पुण्य
बंधाय छे; अने एनी समजणनुं फळ तो कोई अलौकिक छे.
१६६. अरे, तारुं ज्ञान जेम परनी तरफ झुके छे ने परने जाणे छे, तेम अंतरमां
आत्मानो प्रेम करीने ज्ञानने स्व तरफ झुकाव ने स्वने जाण, तेमां अपूर्व
कल्याण छे.
१६७. आ जीवननो शो भरोसो? एक दिवस देहथी छूटवानो प्रसंग आवशे. माटे
देहथी अत्यारे छूटो ज छुं–एम देहथी भिन्न चेतनस्वरूप आत्मानो निर्णय करी
ले, अने तेना संस्कार आत्मामां पाडी दे. –ए ज एक शरण छे.
१६८. जेम बरफनी शीला सर्वत्र ठंडकथी भरेली छे, तेम चैतन्यभगवान आ आत्मा
तद्न शांत–शीतल–ठंडो छे, तेमां कषायनी आकुळता जरा पण नथी. आवा
आत्माने अनुभवतां आत्माने निराकुळसुख थाय छे ने दुःखरूप आस्रवो छूटी
जाय छे.
१६९. अज्ञान भावमां विकल्पथी डामाडोळ थईने जीवे आस्रवोने पकडया हता;
ज्ञानभावे निर्विकल्प थईने ते आस्रवोने पोताथी भिन्न जाणीने छोडी दीधा,
एटले आत्मा निरास्रव थयो, विज्ञानघन थयो.
१७०. जगतना पदार्थो हुं नथी, पण जगतना पदार्थोने जे लक्षमां ल्ये छे ते हुं छुं.
१७१. जेनो अनुभव करतां आनंदनुं–सुखनुं वेदन थाय ते हुं छुं; जेना वेदनमां दुःख
थाय ते हुं नथी.
१७२. रागना वेदनमां अग्निना दाह जेवी आकुळता ने दुःख छे; वर्तमानमां ते दुःखरूप
छे, ने भविष्यमां पण तेना फळमां दुःख ज छे. –ए कांई आत्मानो स्वभाव
नथी.
१७३. दुःख आत्मानो स्वभाव केम होय? आत्मानो स्वभाव तो सुख छे तेनुं फळ
पण सुख छे. –आवो आत्मा हुं छुं –एम नक्की करीने तेने अनुभवमां लेवो, ते
ज दुःखथी छूटीने सुखी थवानो उपाय छे.