Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
१८४. आत्मा जेम शरीरथी जुदो छे तेम रागादिथी पण जुदो छे. रागनी वृत्तिओ नाश
थवा छतां तेने जाणनारो चेतनस्वभाव एवो ने एवो रहे छे, ते चेतनस्वभाव
हुं छुं.–आम अंदर भेदज्ञानथी ओळखाय छे.
१८प. चैतन्यसत्ता आत्मा छे; ते ज्ञान–आनंदस्वभावथी भरपूर छे. ज्ञानस्वभावथी
पूरो मान्यो एटले तेमां राग रही शके नहीं.
१८६. भाई, आवो तारो स्वभाव......ते समजवानो उत्साह लाव! पोतानो अनंत
वैभव जाणतां कोने उल्लास न आवे! अरे, उल्लास लावीने संभाळ तो खरो.
१८७. जेटला आस्रवो छे, जेटला रागभावो छे–अशुभ के शुभ, ते बधाय दुःखथी
बनेला छे, ने तेनुं फळ पण दुःख ज छे. राग वर्तमानमां के भाविमां क््यारेक
सुखनुं कारण नथी.
१८८. सुखथी भरेलो तो भगवान आत्मा छे. तेना सेवनमां वर्तमान सुख, अने
भविष्यमां तेना फळमां पण सुख; तेमां दुःखनो कयांय प्रवेश नथी.
१८९. अरे, चैतन्य! तारा गुणनी प्रशंसा संतो तने संभळावे छे, ते सांभळीने प्रसन्न
था.....प्रमोदित था. नानुं बाळक पण प्रशंसा सांभळीने राजी थाय छे.....तो
संतो कहे छे के तुं शुद्ध छो.......तुं प्रभु छो......तुं अनंत गुणवाळो परमात्मा
छो.....रागनां दुःखवाळो तुं नथी, तुं सुखनो भंडार छो......ते सांभळीने तुं राजी
था.
१९०. स्वानुभवरूप जे आत्मवैभव, ते आत्मवैभव वडे हुं आ समयसारमां
शुद्धआत्मा देखाडीश–एम कहीने आचार्यदेवे आ समयसारनी रचना करी
छे....तेमां आत्मानो अद्भुत वैभव बताव्यो छे. आत्माना आनंदमां कलम
बोळीबोळीने आ समयसार लखायेलुं छे.
१९१. आत्मानो वैभव कोई ईंद्रियो वडे, विकल्पोवडे के बहारनां चिह्नो वडे जणाय
तेवो नथी; अंतरना अतीन्द्रिय स्वसंवेदन वडे ज ते जणाय छे....तेने जाणतां
महान आनंद थाय छे.
१९२. बापु! आत्मानो आवो आनंद, तेने साधवानो आ अवसर छे. दुःख कांई तारुं
स्वरूप नथी; अदुःख एटले के सुखनो अनुभव आपे एवो ज आत्मानो
स्वभाव छे, दुःखरूप एवा अन्य भावोथी तारा आत्माने तुं भिन्न जाण