आत्मानी उन्नति करतां करतां आ छेल्ला भवमां केवळज्ञान प्रगट करीने
पावापुरीथी मोक्ष पधार्या; त्रण वर्ष पछी तेने अढी हजार वर्ष पूरा थशे ने तेनो
मोटो उत्सव उजवाशे.
भवोथी हतुं; अतीन्द्रिय आनंदना स्वादनो अनुभव हतो; एवी अनुभवदशा
उपरांत अवधिज्ञानसहित भगवान महावीरनो आत्मा त्रिशलाराणीनी कूंखे
सवानव मास रह्या, ते वखते पोते पोताने देहथी भिन्न जाणता हता. त्रीस वर्ष
सुधी कुमार अवस्थामां रह्या. लग्न तो तेमणे कर्युं न हतुं. त्रीसवर्षनी वये
जातिस्मरण थतां तेओ वैराग्य पाम्या ने आत्मध्यान सहित वनजंगलमां विचरवा
लाग्या. बार वर्ष सुधी मुनिअवस्थामां ज्ञान–ध्यान सहित विचर्या; ने वैशाख सुद
दशमना रोज सम्मेदशिखरनी नजीक ऋजुवालिका नदीना तीरे क्षपकश्रेणी मांडीने
लोकालोकप्रकाशक केवळज्ञान प्रगट करीने अरिहंत परमात्मा थया. अने पछी
राजगृहीमां विपुलाचल पर अषाड वद एकमथी दिव्यध्वनिवडे जगतने
मोक्षमार्गनो उपदेश आप्यो. ते उपदेश गणधरोए झीलीने शास्त्रोनी रचना करी, ने
वीतराग मार्गी संतोनी परंपराथी ते शास्त्रो चाल्या आवे छे. तेमांथी एक आ
नियमसार छे; तेमां आ ४० मी गाथाओ श्लोक वंचाय छे. तेमां कहे छे के–
स्वरूपने भूलीने मोह कर्यो. हवे ते मोहने छोडवा माटे आ उपदेश छे.
मोजुद छे. जेम काले आत्मा क््यां हतो तेनुं ज्ञान थाय छे तेम आ भव पहेलांं
पूर्वना भवोमां आत्मा क््यां हतो तेनुं पण ज्ञान थई शके छे. आत्माना ज्ञाननी
अचिंत्य ताकात छे.