Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ३ :
आत्मा देहथी जुदो अनादिनो ज्ञान–आनंदस्वरूप छे; अज्ञानने लीधे
आत्माने पोताना आनंदनी खबर नथी, छतांपण ते पोते आनंदथी भरेलो ज छे;
आनंदस्वभाव छे तेनो कांई नाश थयो नथी. ज्यारे जागे ने ज्ञानचेतनारूप
थईने अंतरमां देखे त्यारे पोताना आनंदनो अनुभव थाय छे. –आवो अनुभव
हे जीव! तुं आजे ज कर.
आत्मा सदाय ज्ञानस्वरूपे प्रकाशमान छे; रसिक जनोने आवो आत्मा
रुचिकर छे–वहालो छे. हे जीव! तुं सर्व तरफथी प्रकाशमान एवा ज्ञानस्वरूपने
अनुभवमां ले. ज्ञान ज आत्मानो सम्यक् स्वभाव छे; राग कांई आत्मानो
स्वभाव नथी; ते तो परभाव छे, ने देह तो जड छे. बापु! हवे ते परभावोना
वेदनने रहेवा दे, ने तारा आनंदस्वभावना स्वादने चाख. आवा आत्माने
देखतांवेंत तारो अनादिनो मोह छूटी जशे, ने आत्मानी अनुभवदशा वडे
मोक्षपंथ प्रगट थशे. आ महावीरनो मार्ग छे, ने आ ज महावीरनो उपदेश छे.
भगवान महावीर आवा मार्गे मोक्ष पधार्या ने जगतने माटे पण आवो ज
मोक्षमार्ग बताव्यो. जे जीव आवो मार्ग समजीने पोतामां प्रगट करे तेनो अवतार
सफळ छे; तेणे महावीर भगवानने खरेखर ओळखीने तेमनो महोत्सव उजव्यो.
अने तेणे पोतामां महावीरना वीतराग मार्गने प्रसिद्ध कर्यो.
अहा, आवुं परम चैतन्यतत्व! –तेमां जडनो प्रवेश नथी, रागादि
परभावनो प्रवेश नथी, भेदना विकल्पनो प्रवेश नथी, ए तो बधा तेनाथी बहार
ने बहार रहे छे; अंतरना चैतन्यतत्त्वने अनुभवमां लेतां परम आनंदरूप
आत्मा अनुभवमां आवे छे. आवो अनुभव ते भवचक्रथी छूटवानो उपाय छे.
आवो मोंघो मनुष्यभव मळ्‌यो तो भवना अभावनो भाव प्रगट कर. तुं
अनादिथी अज्ञानने लीधे क्षणेक्षणे भयंकर भावमरण करी रह्यो छे ने दुःखी थई
रह्यो छे, तो हवे अंतरमां विचार तो कर के आत्मानुं खरूं स्वरूप शुं छे? आ
देहनी तो राख थशे, ते राखथी भिन्न चैतन्यतत्त्व पोते कोण छे तेने जराक
लक्षमां तो ले! शीघ्र–त्वराथी आत्माने ओळख, तेमां प्रमाद न कर. प्रमाद करीश
तो आ मोंघो अवसर चाल्यो जशे.
अहा, महावीर भगवाने जन्मीने आत्माना परमात्मपदने साध्युं, केवा
आत्मानी साधना करी–तेनुं आ वर्णन छे. बापु! तारा अंतरमां पण आवुं ज