Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
परमात्मतत्त्व बिराजमान छे, तेमां नजर करीने अनुभव करतां आनंद थशे....ने
तारा भवना अंत आवशे. माटे हे जीव! आजे ज त्वराथी तारी चैतन्यसंपदाने
अनुभवमां ले.
श्री मुनिराज चैतन्यपदनी संपदा बतावतां प्रमोदथी कहे छे के–अहो, आ
आत्मा पोते सदाय शुद्धचिदानंदरूपी संपदाओनी खाण छे, ए ज उत्कृष्ट खाण छे.
जगतमां सोना–रूपा–हीरानी खाण थाय छे ते कांई उत्कृष्ट नथी, ते तो जड
पुद्गलनी रचना छे; आत्मा चैतन्यरत्नोनी उत्कृष्ट खाण छे; आत्मानी
चैतन्यसंपदामां कोई उपाधि नथी, तेमां विपदा नथी. आवा आत्माने ज अमे
निजपद तरीके अनुभवीए छीए, बीजा तो बधा अपद छे, अपद छे.
भाई, आवी उत्कृष्ट चैतन्यसंपदा तारी खाणमां ज पडी छे, तेने तुं
साध....तेने साधवामां कोई कलेश नथी, दुःख नथी; तेने साधवामां तो आनंदनी
प्राप्ति छे. भगवान महावीरे आवा आत्मानी साधना पूर्व भवोमां शरू करी हती
तेमां आगळ वधतां वधतां आ भवमां आनंदनी पूर्णता करीने साक्षात् परमात्मा
थया. तेमनुं स्मरण करीने तेमना मार्गने साधवो ते साचो महोत्सव छे.
अरे प्रभु! सुखनी संपदा तो तारामां होय, के जडमां होय? जडसंपदामां
तारुं सुख नथी. सुखनी संपदावाळो तो तुं पोते ज छो. तारी चैतन्यसंपदामां कोई
विपदा नथी. मान–अपमानना विकल्पो के निंदा–प्रशंसाना शब्दो तेमां प्रवेशी
शकता नथी. मान मळतां फूलाई जाय, के अपमान थतां करमाई जाय–एवुं आ
चैतन्यतत्त्व नथी; चैतन्यतत्त्व तो सदाय आनंदमय छे, जेमां कदी विपदा आवती
ज नथी.
अरे जीव! पोतानी संपदानो कदी तें विचार कर्यो नथी, तेने जोवानो
प्रयत्न कर्यो नथी, ज्ञानी पासेथी सांभळीने अंदर मनन कर्युं नथी, पण हवे आ
अपूर्व टाणां मळ्‌या छे, ज्ञानी संतो तने तारी महान चैतन्यसंपदा बतावे छे, तो
ते सांभळीने बहुमानपूर्वक तेनुं मनन कर, अंदर विचार कर, ने अंतरना
प्रयत्नवडे तारी आनंद संपदाने देख. अरे, एकवार तो अमे कहीए तेवो निर्णय
कर. सुखनी आ मौसम छे; आनंदनो पाक पाके ने अनंतकाळनुं सुख मळे एवुं
तारुं अतीन्द्रिय चैतन्यधाम छे. संतो आवा आनंदधामने अनुभवे छे ने तमे पण
आजे ज तेनो अनुभव करो.