Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ५ :
पोताना अनुभवनी साक्षी सहित श्री मुनिराज कहे छे के–हुं आवा आनंदने
अनुभवुं छुं ने तमने पण आवा आनंदनो अनुभव करवा माटे आमंत्रु छुं. आवो
अनुभव थई शके छे, माटे तमे तेवो अनुभव प्रगट करीने तमारी चैतन्यसंपदाने
पामो.
शुभ के अशुभ ते तो बधा विषवृक्षनां फळ छे; तेनाथी पार एवुं जे
चैतन्यतत्त्वनुं अमृत छे तेने अमे अनुभवीए छीए, अने हे जीवो! तमे पण आ
सहज चैतन्यअमृतने हमणां ज भोगवो. विलंब न करो–आळस न करो, हमणां ज
अंतर्मुख थईने तेने अनुभवो. पोतानुं तत्त्व पोतामां ज छे, –पोते पोताना अनुभवमां
विलंब शो? जे जीव हमणां ज आवा आत्मतत्त्वने अनुभवे छे ते अल्पकाळमां
मुक्तिने पामे छे, –तेमां कोई संशय नथी.
अनुभव करनार पोते पोताना मुक्तस्वरूपने पोतामां देखे छे. एटले मोक्षने
माटे तेने कोई संदेह रहेतो नथी. शुभाशुभथी पार चैतन्यना आनंदनो ज्यां अनुभव
थयो त्यां मोक्षना आनंदनो नमूनो आवी गयो; ने अल्पकाळमां साक्षात् मोक्षदशा
प्रगट करीने ते पोते सिद्धपरमात्मा थई जशे.
आवो महावीर भगवाननो मार्ग छे.
भगवान महावीरे आत्माना अनुभव वडे मोक्षने साध्यो........
तमे पण आजे ज एवो अनुभव करो.
–निःशंकता–
आ मार्गना सेवनथी आत्माने जन्म–मरणनो अभाव थशे अने मोक्षसुखनी
प्राप्ति थशे–एवी निःशंकता पूर्वक सत्य मार्गनो निर्णय थवो जोईए. साचो मार्ग जाणे
अने आवी निःशंकता न थाय एम बने नहीं.
– साची श्रद्धा–
शुद्धात्मानी सन्मुख श्रद्धा ते ज साची श्रद्धा छे. व्यवहारना पक्षमां जे रोकाय छे
तेने साची श्रद्धा नथी. शुभ कर्मने ज धर्म माननारा तेओ मिथ्याश्रद्धानी छे.