Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 55 of 69

background image
: ५२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
अने ज्ञान जुदा छे, तेम स्वर्ग अने मोक्ष जुदा छे. स्वर्ग तो रागनुं फळ छे,
मोक्ष तो ज्ञाननुं फळ छे, जेम रागमां सुख नथी तेम तेना फळरूप स्वर्गमां
पण सुख नथी; मोक्ष वीतरागस्वरूप छे, तेमां सुख छे.
१७. प्रश्न:– चार गतिना सम्यग्द्रष्टि जीव मरीने क््यां–क््यां उपजे छे?
उत्तर:– मनुष्य सम्यग्द्रष्टि मरीने देवमां ऊपजे छे, अथवा मोक्ष पामे छे; पण जो
पूर्वे मिथ्यात्वदशामां आयु बधाई गयुं होय तो ते जीव भोगभूमि–
मनुष्यमां तिर्यंचमां के प्रथम नरकमां पण ऊपजे छे.
* देव–सम्यग्द्रष्टि मरीने मनुष्यमां ज ऊपजे छे.
* नारकी–सम्यग्द्रष्टि मरीने मनुष्यमां ज ऊपजे छे.
* तिर्यंच–सम्यग्द्रष्टि मरीने देवमां ज ऊपजे छे.
१८. प्रश्न:– सती चंदनबाळा धर्मात्मा होवा छतां तेने केम आवां कष्ट पड्या?
(सरोजबेन, अमदावाद)
उत्तर:– पूर्वे अज्ञानदशामां तेणे कोई निर्दोष धर्मात्मा–शीलवंत जीवोनी निंदाना
भाव कर्या हशे, कोई प्रकारे देव–गुरु–धर्मनी आसातना करी हशे. तेथी एवा
कष्ट आवी पड्या. पण अंते धर्मनी आराधना वडे तेणे पोताना जीवनने
सफळ बनाव्युं. आ उपरथी एवो बोध मळे छे के धर्मनी आराधनामां द्रढ
थवुं, अने कोई धर्मात्मानी निंदा न करवी.
१९. प्रश्न:– अमारी पासे ओछी मूडी होय तो दान क््यांथी करीए?
उत्तर:–
प्रथम तो, मात्र पैसा वडे ज दान थई शके ए वात खोटी छे. मुनिवरो पासे
तो कदी पैसा होता नथी छतां तेओ मोटा दानेश्वरी छे, कई रीते? के तेओ
ज्ञानदान आपीने अनेक जीवोने मोक्षपंथे चडावे छे. ज्ञानदान सौथी महान
छे; एक हाथी धर्मात्मा–पंचमगुणस्थानी श्रावक हतो; जंगलना बीजा
हाथीओ सूंढमां सूकां घासपान वगेरे लावीने अत्यंत भक्तिथी ते धर्मात्मा–
हाथीने आहारदान करता हता. एमां पैसानी जरूर क््यां पडी? अने जेने
दान करवुं ज होय ते मूडी गणवा न बेसे के आटली मूडी थाय पछी दान
करुं. बे पैसामांथी