मोक्ष तो ज्ञाननुं फळ छे, जेम रागमां सुख नथी तेम तेना फळरूप स्वर्गमां
पण सुख नथी; मोक्ष वीतरागस्वरूप छे, तेमां सुख छे.
उत्तर:– मनुष्य सम्यग्द्रष्टि मरीने देवमां ऊपजे छे, अथवा मोक्ष पामे छे; पण जो
मनुष्यमां तिर्यंचमां के प्रथम नरकमां पण ऊपजे छे.
* देव–सम्यग्द्रष्टि मरीने मनुष्यमां ज ऊपजे छे.
* नारकी–सम्यग्द्रष्टि मरीने मनुष्यमां ज ऊपजे छे.
* तिर्यंच–सम्यग्द्रष्टि मरीने देवमां ज ऊपजे छे.
कष्ट आवी पड्या. पण अंते धर्मनी आराधना वडे तेणे पोताना जीवनने
सफळ बनाव्युं. आ उपरथी एवो बोध मळे छे के धर्मनी आराधनामां द्रढ
थवुं, अने कोई धर्मात्मानी निंदा न करवी.
उत्तर:–
तो कदी पैसा होता नथी छतां तेओ मोटा दानेश्वरी छे, कई रीते? के तेओ
ज्ञानदान आपीने अनेक जीवोने मोक्षपंथे चडावे छे. ज्ञानदान सौथी महान
छे; एक हाथी धर्मात्मा–पंचमगुणस्थानी श्रावक हतो; जंगलना बीजा
हाथीओ सूंढमां सूकां घासपान वगेरे लावीने अत्यंत भक्तिथी ते धर्मात्मा–
हाथीने आहारदान करता हता. एमां पैसानी जरूर क््यां पडी? अने जेने
दान करवुं ज होय ते मूडी गणवा न बेसे के आटली मूडी थाय पछी दान
करुं. बे पैसामांथी