Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ५३ :
एक पैसो आपीने पण दान थई शके छे. रकमनी मोटाई उपरथी दानना
भावनुं माप थतुं नथी. मननी मोटाई वडे परिग्रहनो ममत्वभाव घटे ते
अनुसार दान थाय छे. एक माणस करोडो रूा. वापरे, बीजो माणस एक ज
रूा. वापरे, –छतां बीजा माणसनी दानभावना जोरदार होय–एम पण बनी
शके छे. कोई प्रकारे धर्मनी सेवामां, साधर्मीनी सेवामां पोतानो समय
आपवो ते पण दान छे. (शक्तिना प्रमाणमां दान अपाय छे. मूडीनो चोथो,
छठ्ठो के छेवट दशमो भाग दानमां वापरवानो उपदेश छे.)
२०. प्रश्न:– मरवुं न होय तो शुं करवुं?
उत्तर:– देहथी भिन्न आत्माने जाणवो. –एटले तमे जीवपणे सदाय जीवंत रहेशो.
मरशे अने बळशे ते कांई तमे नथी, तमे तो उपयोगस्वरूप अविनाशी
आत्मराम छो; तमारुं मरण नथी.
२१.प्रश्न:– द्रव्य–गुण–पर्याय तेमां पांचभाव कई रीते ऊतरे?
(नेमचंद जैन, सावरकुंडला)
उत्तर:– द्रव्य अने गुण पारिणामिकभावे छे, पर्यायमां पांचे भाव लागु पडे छे.
२२. प्रश्न:– नव तत्त्वमां पांच भाव समजावो.
उत्तर:–
जीव तत्त्व पारिणामिकभावरूप छे.
अजीव तत्त्वमां कर्मअपेक्षाए उदय–उपशम–क्षयोपशम–क्षय ने पारिणामिक
ए पांचे बोल लागु पडे छे.
पुण्य–पाप–आस्रव ने बंध ते चारेय औदयिकभावरूप छे.
संवर–निर्जरा ते औपशमिक–क्षायोपशमिक तथा क्षायिकभावरूप छे.
मोक्ष ते क्षायिकभावरूप छे.
२३. प्रश्न:– पूजा करवाथी शुं लाभ? (जयेश जैन, वढवाण)
उत्तर:– जेमनी पूजा करीए छीए तेमना जेवा थवानी भावना जागे. वीतराग
देवनी पूजा करनार पोते पण वीतराग थवानी भावना भावे छे.
२४. प्रश्न:– तीर्थंकर अने चक्रवर्तीमां शो फेर?
उत्तर:–
तीर्थंकर ए धर्मना चक्रवर्ती छे; ने चक्रवर्ती राजा ते तो राज्यना चक्रवर्ती