Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 57 of 69

background image
: ५४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
छे. चक्रवर्ती पण तीर्थंकर पासे तो दास छे. तीर्थंकर भगवान केवळज्ञानने
लीधे त्रण लोकना राजा छे. तीर्थंकर तो ते ज भवे मोक्ष पामे; अने चक्रवर्ती
जोके मोक्षगामी तो छे ज पण ते ज भवे मोक्ष पामे के पछी पण पामे.
भरतक्षेत्रमां एक चोवीसीमां तीर्थंकरो २४ थाय ने चक्रवर्ती १२ थाय.
शांतिनाथ–कुंथुनाथ–अरनाथ भगवंतो पहेलां चक्रवर्ती हता, पछी तेओ छ
खंडना राजवैभवने छोडीने धर्मना चक्रवर्ती तीर्थंकर थया. एक वात याद
राखजो के तीर्थंकरपणुं अने चक्रवर्तीपणुं ए बंने पद तो पुण्यप्रकृतिनुं फळ
छे, ते बंने वगर पण मोक्ष पामी शकाय छे, केमके आत्मगुण तेनाथी जुदा
छे. सर्वज्ञता ते आत्मगुण छे.
२प. प्रश्न:– दर्शनमोह अने चारित्रमोहनी सरळ भाषामां व्याख्या शुं? अने तेनो क्षय
केम थाय? (जयेन्द्र जैन, जामनगर)
उत्तर:– पोताना आत्मानुं साचुं स्वरूप जेवुं छे तेवुं न समजतां, तेमां भूल करवी
तेनुं नाम दर्शनमोह; अने पोताना आत्मस्वरूपमां वीतराग भावे स्थिर न
रही शकवुं तेनुं नाम चारित्रमोह.
आत्मस्वरूप जेवुं छे तेवुं समजतां दर्शनमोह टळे; अने पछी वीतरागभावे
स्वरूपमां स्थिर रहेता चारित्रमोह टळे.
२६ प्रश्न:– (नीचेनी कडीनो अर्थ समजावशो)
अनंत सौख्य नाम दुःख, त्यां रही न मित्रता!
अनंत दुःख नाम सौख्य, प्रेम त्यां विचित्रता!!
उघाड न्यायनेत्रने नीहाळ रे नीहाळ तुं,
निवृत्ति शीघ्रमेव धारी. ते प्रवृत्ति बाळ तुं.
उत्तर:– श्रीमद् राजचंद्रजीए आ चार लीटीमां आत्मानो घणो सरस भाववाही
उपदेश आप्यो छे. तेओ कहे छे के अरे जीव! तारा आत्मानुं स्वरूप के जे
अनंतसुखथी भरेलुं छे अने दुःख तो जेमां नाममात्र छे–एटले के
कहेवामात्र छे, खरेखर तेमां दुःख नथी, –एवा आत्मानी मित्रता तने केम
न रही? एनो प्रेम तने केम न आव्यो? अने बाह्य विषयो–के जेमां अनंत
दुःख छे ने सुख तो कहेवामात्र ज छे, खरेखर तेमां सुख नथी,
–ते विषयोमां तने प्रेम आवे छे! –आ केवी विचित्रता छे? आ तने शोभतुं
नथी. –माटे तारा न्यायनेत्रने (ज्ञान–