Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ५५ :
चक्षुने) ऊघाडीने नीहाळ रे नीहाळ! विचार तो कर के तारुं हित शेमां छे?
आत्मामां सुख छे के विषयोमां? एम विवेकपूर्वक विचारीने हे जीव! हवे तुं
आवी मिथ्या प्रवृत्तिथी शीघ्रमेव निवृत्ति धारण कर. बाह्य विषयप्रवृत्तिने
छोड...ने आत्मानो प्रेम कर....शीघ्र ज कर.
–आ प्रमाणे आत्महितनी सुन्दर प्रेरणा आपी छे.
२७. प्रश्न:– साचुं सुख केम देखातुं नथी?
उत्तर:– जीव पोते ज्ञाननी आंख ऊघाडतो नथी माटे! जो पोतानी ज्ञानआंख उघाडे
तो पोतामां ज सुखनो मोटो दरियो देखाय.
२८. प्रश्न:– मोक्षनो मार्ग शुं छे? (जस्मीन जैन, वढवाण)
उत्तर:–
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मोक्षमार्ग छे, ते वीतराग छे, तेमां राग नथी.
२९. प्रश्न:– आतमदेव केवो हशे?
उत्तर:–
अस्सल मजानो....खास जोवा जेवो! ज्ञान ने आनंदथी भरेलो.
३०. प्रश्न:– मानस्तंभ शुं छे?
उत्तर:–
जैनधर्मनी दीवादांडी! दूरथी एने जोतां धर्मना मार्गे जवानी प्रेरणा जागे छे.
३१. प्रश्न:– साचुं ज्ञान कोने कहेवाय? (कमलेश जैन, वढवाण)
उत्तर:– आत्माने जाणे ते ज साचुं ज्ञान. (भेदज्ञान ते ज्ञान छे. बाकी बुरो
अज्ञान)
३२. प्रश्न:– सुख शेमां छे?
उत्तर:– भगवानमां ने आपणामां बधायमां सुख छे; मात्र जडमां सुख नथी.
बधाय आत्मा सुखना ज भंडार छे; जे ओळखे ते सुखी थाय.
३३. प्रश्न:– अनेकान्तवादी एटले शुं?
उत्तर:– आत्मामां अनेक धर्मो एक साथे छे, नित्यपणुं–अनित्यपणुं वगेरे एकसाथे
ज छे; आवा अनेक धर्मस्वरूप आत्माने जे ओळखे ते अनेकांतवादी छे.