उत्तर:–
उत्तर:–
उत्तर:– तीर्थंकर भगवान ज्यारे उपदेश आपे त्यारे धर्मसभा तरीके सभामंडप
होय छे. त्यांनी वावडीना पाणीमां सात भव देखाय छे, त्यां भूख–तरस
लागती नथी, मृत्यु थतुं नथी, गमे तेवा शत्रुओ पण वेरभाव भूली जाय
छे, क्रूर जीवो क्रूरता छोडीने अहिंसक बनी जाय छे, आंधळा देखता थई जाय
छे, लुला चालता थई जाय छे, आत्मसाधक धर्मी जीवोनां टोळेटोळां त्यां
नजरे पडे छे...अने सौथी महान वस्तु साक्षात् सर्वज्ञपरमात्मा अरिहंतदेव
त्यां नजरे देखाय छे ने तेमनी वाणीद्वारा भव्य जीवो पोताना शुद्धात्माने
जाणीने परमपदने साधे छे. अहा, प्रभुना ए समवसरणनुं वर्णन केम
थाय? एने जोवाने हैडुं तलसी रह्युं छे.
उत्तर:– चेतनानो विलास ते आत्मानो साचो व्यवहार छे, अज्ञानीओ ते
संसारमां रखडे छे.
उत्तर:– जेनामां स्पर्श–रंग वगेरे होय तेने रूपी कहेवाय छे; स्पर्शादि जेमां न होय
शके छे. अरूपी पदार्थ आंख वगेरे ईंद्रियोथी देखाता नथी. ईन्द्रियद्वारा जे
कांई जणाय ते बधुंय रूपी समजवुं.
उत्तर:–