Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ५६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
३४ प्रश्न:– आपणे भगवानने वंदन शा माटे करीए छीए? (मुकेश जैन, वढवाण)
उत्तर:–
आपणने तेमना जेवा थवानुं गमे छे तेथी.
३प. प्रश्न:– मुक्त जीव संसारमां केम नहि आवता होय?
उत्तर:–
शुं काम आवे? सुखने छोडीने दुःखमां कोण आवे?
३६. प्रश्न:– समवसरण शुं छे?
उत्तर:– तीर्थंकर भगवान ज्यारे उपदेश आपे त्यारे धर्मसभा तरीके सभामंडप
वगेरेनी अद्भुत रचना ईन्द्रो करे छे......ते समवसरणमां अनेक अतिशय
होय छे. त्यांनी वावडीना पाणीमां सात भव देखाय छे, त्यां भूख–तरस
लागती नथी, मृत्यु थतुं नथी, गमे तेवा शत्रुओ पण वेरभाव भूली जाय
छे, क्रूर जीवो क्रूरता छोडीने अहिंसक बनी जाय छे, आंधळा देखता थई जाय
छे, लुला चालता थई जाय छे, आत्मसाधक धर्मी जीवोनां टोळेटोळां त्यां
नजरे पडे छे...अने सौथी महान वस्तु साक्षात् सर्वज्ञपरमात्मा अरिहंतदेव
त्यां नजरे देखाय छे ने तेमनी वाणीद्वारा भव्य जीवो पोताना शुद्धात्माने
जाणीने परमपदने साधे छे. अहा, प्रभुना ए समवसरणनुं वर्णन केम
थाय? एने जोवाने हैडुं तलसी रह्युं छे.
३७. प्रश्न:– आत्मानो साचो व्यवहार क््यो छे? (महेन्द्र जैन दाहोद)
उत्तर:– चेतनानो विलास ते आत्मानो साचो व्यवहार छे, अज्ञानीओ ते
व्यवहारने ओळखता नथी, ने शरीराश्रित व्यवहारने पोतानो मानीने
संसारमां रखडे छे.
३८. प्रश्न:– रूपी अने अरूपी एटले शुं? (भारतीबेन जैन, वढवाण)
उत्तर:– जेनामां स्पर्श–रंग वगेरे होय तेने रूपी कहेवाय छे; स्पर्शादि जेमां न होय
तेने अरूपी कहेवाय छे. रूपी पदार्थ पुद्गल ज छे, अने ते ईंद्रियगम्य थई
शके छे. अरूपी पदार्थ आंख वगेरे ईंद्रियोथी देखाता नथी. ईन्द्रियद्वारा जे
कांई जणाय ते बधुंय रूपी समजवुं.
३९. प्रश्न:– अरूपी होय ते आत्मा छे–ए वात साची छे?
उत्तर:–
ते अर्ध सत्य छे. केमके ‘आत्मा अरूपी छे’ ए खरूं, पण ‘जे कोई