कोईक जड पण छे. आकाश वगेरे चार द्रव्यो अरूपी होवा छतां ते आत्मा
नथी, ते जड छे; आत्मानुं अबाधित लक्षण चेतनपणुं छे–जे बीजा कोईमां
नथी, ने आत्मामां सदाय छे.
उत्तर:– ते वीतरागदेवनी वाणी छे अने शुद्धात्माने ओळखवामां निमित्त छे तेथी.
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उत्तर:– भगवानना अष्टप्रातिहार्यरूप ते वैभव छे. भगवाने त्रण रत्न वडे त्रण
अलंकारपूर्वक स्तुति करे छे. वळी, भगवानना मुखनी दिव्यशोभा पासे
चंद्रनी शोभा पण झंखवाई गई, तेथी चंद्र पोते जाणे त्रण छत्रनुं रूप
भगवाननी स्तुति करवामां आवे छे.
छुं; आत्मधर्म वगेरे वांचुं छुं. सवारमां भगवाननां दर्शन करीने कोलेज
जतां रस्तामां विचार आव्या करे छे के आ देह तो क्षणभंगुर छे; संसारमां
कांई सार नथी. –वारंवार मृत्युनी बीक लाग्या करे छे....क््यांय गमतुं
भाईश्री, प्रथम तो कोलेजना अभ्यासनी वच्चे पण भगवाननां दर्शन अने
तत्त्वविचारमां रस लेवा माटे धन्यवाद! बीजुं, ज्यारे गुरुदेव आपणने
देहथी भिन्न अविनाशी आत्मा समजावे छे त्यारे मृत्युथी भयभीत रहेवानी
जरूर नथी. हा, देहनी क्षणभंगुरता जाणीने आत्महित माटे क्षणे–पळे
जागृत रहेवुं जरूरी छे. तेम लखो छो के क््यांय गमतुं नथी, –तो अंदर