Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ५७ :
पदार्थ अरूपी छे ते बधा आत्मा’ नथी; अरूपी पदार्थमां कोई आत्मा छे,
कोईक जड पण छे. आकाश वगेरे चार द्रव्यो अरूपी होवा छतां ते आत्मा
नथी, ते जड छे; आत्मानुं अबाधित लक्षण चेतनपणुं छे–जे बीजा कोईमां
नथी, ने आत्मामां सदाय छे.
४०. प्रश्न:– मंदिरमां शास्त्रनी स्थापना शुं काम करीए छीए? (नीताबेन जैन)
उत्तर:– ते वीतरागदेवनी वाणी छे अने शुद्धात्माने ओळखवामां निमित्त छे तेथी.
देव–गुरु–शास्त्र त्रणेने पूजनीय कह्या छे.
४१. प्रश्न:– जडमां सुख केम न होय?
उत्तर:–
केमके ते जड छे; सुख ते आत्मानो गुण छे, ते जडमां न होय.
४२. प्रश्न:– सम्यग्दर्शन माटे शुं करवुं जोईए?
उत्तर:–
साची आत्मलगनीथी तत्त्वनो अभ्यास अने धर्मात्मानो सत्संग.
४३. प्रश्न:– भगवान उपर त्रण छत्र होय छे ते शुं सूचवे छे?
उत्तर:– भगवानना अष्टप्रातिहार्यरूप ते वैभव छे. भगवाने त्रण रत्न वडे त्रण
लोकमां सर्वश्रेष्ठ पद प्रगट कर्युं तेना प्रतीकरूपे त्रण छत्र छे–एम ज्ञानीजनो
अलंकारपूर्वक स्तुति करे छे. वळी, भगवानना मुखनी दिव्यशोभा पासे
चंद्रनी शोभा पण झंखवाई गई, तेथी चंद्र पोते जाणे त्रण छत्रनुं रूप
लईने भगवाननी सेवा करवा आव्यो होय! ईत्यादि अनेक अलंकारथी
भगवाननी स्तुति करवामां आवे छे.
४४. सुरतथी सुरेशकुमार भुरालाल कामदार लखे छे के हुं कोलेजियन बालसभ्य
छुं; आत्मधर्म वगेरे वांचुं छुं. सवारमां भगवाननां दर्शन करीने कोलेज
जतां रस्तामां विचार आव्या करे छे के आ देह तो क्षणभंगुर छे; संसारमां
कांई सार नथी. –वारंवार मृत्युनी बीक लाग्या करे छे....क््यांय गमतुं
नथी....अमूल्य मानवदेह वेडफाई न जाय, ते माटे मार्गदर्शन आपशो.
भाईश्री, प्रथम तो कोलेजना अभ्यासनी वच्चे पण भगवाननां दर्शन अने
तत्त्वविचारमां रस लेवा माटे धन्यवाद! बीजुं, ज्यारे गुरुदेव आपणने
देहथी भिन्न अविनाशी आत्मा समजावे छे त्यारे मृत्युथी भयभीत रहेवानी
जरूर नथी. हा, देहनी क्षणभंगुरता जाणीने आत्महित माटे क्षणे–पळे
जागृत रहेवुं जरूरी छे. तेम लखो छो के क््यांय गमतुं नथी, –तो अंदर