Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ५८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
अभ्यासमां, अने तेने लगता साहित्यमां रस लेशो तो जरूर गमशे. पुराण–
पुरुषोनुं जीवनचरित्र तमने घणो उल्लास आपशे. (ने एवा पुस्तको तो
तमारा सुरतमां ज मळे छे– ‘जैनमित्र’ मांथी तो आजथी ज मूरत करी दो.)
४प. प्रश्न:– सम्यग्दर्शन थया पछी देव के मनुष्यनुं ज आयु बंधाय–ते बराबर, पण
सम्यग्दर्शन वगरनो कोई मनुष्य मरीने पाछो मनुष्यभवमां ज अवतरे–
एम बने? (स. नं. ४३६)
उत्तर:– हा, एम बनी शके छे. सम्यग्द्रष्टि मनुष्य मरीने विदेहक्षेत्र वगेरे कर्म
भूमिमां कदी न अवतरे, पण मिथ्याद्रष्टि मनुष्य मरीने विदेहक्षेत्र वगेरे
कर्मभूमिमां पण अवतरे छे.
४६. प्रश्न:– अनंता जीवो छे तेमांथी छ महिना आठ समये ६०८ जीवो मोक्ष जाय छे;
एवो मोक्षनो प्रवाह सदाय चाल्या ज करे छे; तो अमुक काळे बधाय जीवो
मोक्ष पामी जाय ने संसारमां जीवो खलास थई जाय–एम नहीं बने?
उत्तर:– ना; जीवोनी संख्या एटली अनंत छे के ते कदी नहीं खूटे. मोक्ष करतां
संसारी जीवो सदाय अनंतागुण ज रहेशे. जेम बधोय भविष्यकाळ कदी
भूतकाळरूप नहीं थई जाय. तेम बधाय जीवो कदी मुक्त नहि थई जाय.
भूत अने भविष्यकाळ सदाय रहेवाना छे तेम मुक्त अने संसारी जीव पण
सदाय रहेवाना छे. जीवनी अने काळनी अनंतता ए एवा अतीन्द्रिय
ज्ञाननो विषय छे के तेमां ईन्द्रियजन्य गणित काम न आवे.
४७. प्रश्न:– आपणे नमस्कारमंत्रमां जे पंचपरमेष्ठीने नमस्कार करीए छीए तेओ हाल
क््यां छे? (हरीश जैन. जामनगर)
उत्तर:– सीमंधरादि आठलाख जेटला अरिहंत भगवंतो आ मनुष्यलोकमां
विदेहक्षेत्रमां अत्यारे विचरे छे. सिद्धभगवंतो लोकना छेडे अनंता बिराजे
छे. (आपणा माथानी बराबर उपर पण लोकाग्रे अनंत सिद्धभगवंतो
बिराजे छे.) आचार्य–उपाध्याय अने साधु अढी द्वीपमां (भरत–ऐरावत
अने विदेहक्षेत्रमां) विचरे छे; भरतक्षेत्रमां अत्यारे तेमनी अत्यंत विरलता
छे. परंतु अढीद्वीपमां तो आठ करोड नव्वाणुं लाख नव्वाणुं हजार नवसो ने
सत्ताणुं (८, ९९९९९९७) साधु भगवंतो विचरे छे. –ते सौने आपणा
नमस्कार हो.
४८. प्रश्न:– चंचळ मनने मनाववुं केवी रीते? (जोरावरनगर स. नं. १६९४ थी
१६९८)