: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ५९ :
उत्तर:– मन तो एवुं छे के मनाव्युं कोई रीते माने तेम नथी; एक ज उपाय छे के
आत्माथी एने जुदुं पाडी दो... मनथी पण हुं जुदो छुं–एम आत्माने लक्षमां
ल्यो, एटले मननी चंचळता मटी जशे.
४९. प्रश्न:– अढीद्वीप पछी मानुषोत्तर पर्वत छे त्यांथी आगळ कोई मनुष्य केम नहीं
जई शकता होय? (रंजनबेन, वढवाण)
उत्तर:– संसारनी चारे गतिमां कोई ने कोई प्रकारे पराधीनता छे, माटे हे जीव! तुं
चारे गतिना बंधनने छेदीने सिद्धपदने साध. मनुष्य भले मानुषोत्तरनी बहार
न जई शके पण मोक्षने साधी शके छे. (अढी द्वीप बहार विग्रह गतिनां
मनुष्यो के समुद्घातवाळा मनुष्य होय छे ते हकीकत शास्त्रोथी जाणी लेवी.)
प०. प्रश्न:– सिद्ध भगवान अलोकमां केम नथी जता?
उत्तर:– एमने अलोकमां जवानुं कांई प्रयोजन नथी. प्रयोजन वगरनी प्रवृत्ति
सिद्धभगवानने केम होय? लोकाग्रे तेओ संपूर्ण सुखी छे अने सदाकाळ त्यां
ज स्थिर रहेवानो तेमनो स्वभाव छे.
वळी सिद्धभगवान जो अलोकमां जाय तो अलोकनो ज नाश थई जाय; तेनुं
अलोकपणुं न रहे.
प१. प्रश्नकार राजनभाई मुंबईथी लखे छे के जैनेतर संप्रदायमां जन्म होवा
छतां जैनधर्म प्रत्ये मने खूब ज आदरभाव–प्रेम छे; केमके आत्मधर्ममां
आवती गुरुदेवश्रीनी वाणीद्वारा सम्यक् समज मळती रहे छे.
प्रश्न:– जगत अने जीवनी उत्पत्ति केवी रीते थई?
उत्तर:– जीव अने अजीव अनंत द्रव्योना समूहरूप आ जगतनुं सत्पणुं सदाय छे;
तेओ तद्न नवा कदी उत्पन्न थया नथी, तेमज सर्वथा नाश पण कदी नहि
थाय, सत्पणुं कायम राखीने तेओ नवानवा भावरूपे उत्पाद–व्यय कर्या करे छे.
प२. सर्वज्ञस्वभावी आत्मा उपर कर्मनी असर केवी रीते थई?
उत्तर:– पोते पोताना सर्वज्ञस्वभावनुं अवलंबन न लीधुं, ने तेने भूलीने परना
अवलंबनथी राग–द्वेष–मोहरूप थयो......तेथी तेने कर्म साथे संबंध थयो. पण
कर्मोए तेना उपर कांई असर करी नथी. जो पोते सर्वज्ञस्वभावनी सन्मुख
थईने परिणमे तो रागादि भावकर्म पण न रहे ने जडकर्मनो संबंध पण न रहे.