: ६० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९७
प३ प्रश्न:– आत्मा बळवान के कर्म?
उत्तर:– आत्मानुं अनंत बळ आत्मामां, कर्मनुं बळ कर्ममां; पण कोई तत्त्वनुं बळ
बीजा उपर चालतुं नथी.
प४ प्रश्न:– जैन मुनिओ सफेद वस्त्रो ज केम राखे छे?
उत्तर:– मूलं नास्ति कुतो शाखा? जैन साधुओने वस्त्र ज होतां नथी, पछी तेना
रंगनी शी वात? वस्त्रसहित दशामां श्रावकपणुं होई शके, साधुपणुं न होय.
पप प्रश्न:– आत्मा निरंजन–निराकार छे तो तेने कया साधनवडे प्राप्त करी शकाय छे?
(कांतिलाल जैन....दामनगर)
उत्तर:– जे साधनवडे आत्मानुं निरंजन–निराकारपणुं नक्की थाय छे ते ज साधन
वडे तेनी प्राप्ति (एटले के स्वानुभूति) थाय छे; आत्मा कांई बीजे क््यांय
नथी के तेने प्राप्त करवानो होय; पोते ज आत्मा छे.....अंतर्मुख चेतनावडे
पोते पोतानो अनुभव कर्यो एने ज आत्मप्राप्ति (प्राप्तनी प्राप्ति)
कहेवाय छे.
प६. प्रश्न:– आत्मा अने देह जुदा होवा छतां दुःख वखते आंखमां आंसु केम आवे छे?
उत्तर:– ते प्रकारनो निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे.
प७. प्रश्न:– आत्मानी साधना माटे व्रत–तपनी आवश्यकता खरी?
उत्तर:– ते समजवा माटे पहेलांं व्रत–तपनुं अने आत्मसाधनानुं स्वरूप ओळखवुं
जोईए. प्रथम तो आत्मानी साधना एटले के पूर्ण शुद्धतारूप मोक्षनी
साधना, ते शुद्ध वीतरागभाववडे ज थाय छे, रागवडे थती नथी.
हवे व्रत–तप बे जातनां छे–एक वीतरागभावरूप निश्चय–तप; अने
बीजा शुभरागरूप व्यवहार व्रत–तप. बस, आटलुं समजतां तमारा प्रश्ननो
उत्तर तमने मळी जशे.
प८:– रागादि भावो जीवनी पर्यायमां थाय छे छतां समयसारमां तेने पुद्गलनां
केम कह्या? (विमळाबेन, हिंमतनगर)
उत्तर:– केमके शुद्ध जीवनी अनुभूतिथी ते बहार रही जाय छे, माटे तेने जीव न
कह्यो. पुद्गलमय छे एटले चेतनमय नथी–एम समजवुं.