Atmadharma magazine - Ank 331
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९७ आत्मधर्म : ६१ :
प९ प्रश्न:– गुरु एटले कोण?
उत्तर:– गुणमां जे मोटा होय तेने गुरु कहेवाय छे. रत्नत्रयगुण ते धर्म छे, ने तेमां
जे मोटा होय ते धर्मगुरु छे. सम्यग्ज्ञाननो बोध आपनारा ज्ञानी–धर्मात्मा
ते पण ज्ञानगुरु छे.
६०. प्रश्न:– जेनधर्मने आबाद करवा शुं करवुं?
उत्तर:– कहे हरि जेनधर्मने करवा आबादान,
सरस रीत तो एज छे द्यो बच्चांने ज्ञान.
(–बाकीनां प्रश्नोत्तर आवता अंके)
* * * * *
हे जीव! आत्महितना अवसरमां तुं सावधान था
*
जिज्ञासु जीवोना कल्याण माटे भगवाने वीतराग विज्ञाननो उपदेश आप्यो
छे; तेमां दुःखना कारणरूप मिथ्यात्वादिनुं स्वरूप ओळखावीने तेनो निषेध कर्यो छे;
एटले मिथ्यात्वना प्रकारोने ओळखीने पोतामां कोई एवो दोष होय तो ते दूर
करी, सम्यक् श्रद्धा प्रगट करवी; पण कोई अन्यना एवा दोषो जोई कषाय न करवो;
कारण के पोतानुं भलु–बूरुं तो पोताना परिणामोथी ज थाय छे. पोताना हित
माटे, सर्व प्रकारना मिथ्याभाव छोडीने सम्यग्द्रष्टि थवुं योग्य छे. मिथ्यात्व ते
संसारनुं मूळ कारण छे; राग–द्वेष शुभाशुभ परिणाम ते पण दुःख छे, ते पण
संसारनुं कारण छे, आवा मिथ्यात्व अने राग–द्वेषने दुःखरूप जाणीने, हे जीवो! हवे
तो तेनुं सेवन छोडो; ने आत्मानां श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां लीनतानो उद्यम करो.
है चैतन्य–दोलतवाळा दौलतराम! है आतमराम! तुं तारा
अनंतगुणनिधाननी दोलतने संभाळ. आ सोना–चांदीनी दोलत जड, ए तो
ताराथी जुदी छे; तारो आत्मा केवळज्ञानादि अनंतगुण दोलतथी भरपूर छे; तेने
ओळखीने तारा निजनिधानने संभाळ. भाई, तारामां तो केवळज्ञान ने सिद्धपद
प्रगटवानी ताकात छे, पण पोताने भूलीने तुं भवमां भटक््यो. माटे हवे तो बीजी
बधी पंचात छोडीने, जगतनी जंजाळ छोडीने तुं आत्महितना उद्यममां
लाग......रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गने प्रगट कर.