Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
“नाटक सुनत हिये फाटक खुलत है”
समयसार नाटक द्वारा शुद्धात्मानुं श्रवण
करतां हैयानां फाटक खुल्ली जाय छे
[समयसार–नाटकनां अध्यात्मरसझरतां प्रवचनोमांथी (लेखांक प)]
हैयानां फाटक खोलीने आत्मानो अनुभव करावनारां आ प्रवचनो
सर्वे जिज्ञासुओने खूब ज गम्यां छे... तेथी आत्मधर्ममां
आ लेखमाळा चालु ज रहेशे... तदुपरांत समयसार नाटक
उपरनां प्रवचनो पुस्तकाकारे प्रसिद्ध करवानुं पण
माननीय प्रमुखश्री द्वारा विचारवामां आव्युं छे.
* आत्माना अनुभव वडे परम मोक्षसुख पमाय छे. अहो, आवा अनुभवरसनुं
हे जीवो! तमे सेवन करो. आत्माना अनुभवनो. अने एवा स्वानुभवी
संतोनो जेटलो महिमा करीए तेटलो ओछो छे. पोते आवो अनुभव करवो ते
ज सार छे. आवो अनुभव करवानुं समयसारमां बताव्युं छे, तेथी कहे छे के –
‘नाटक सुनत हिये फाटक खुलत है। ’
* आत्माना अनुभवमां अत्यंत पवित्रता छे तेथी अनुभव ते ज परमार्थ तीर्थ
छे. सम्मेदशिखर – गीरनार – शत्रुंजय वगेरे सिद्धक्षेत्रो शुभभावना निमित्तरूप
व्यवहारतीर्थ छे; पण अहीं तो कहे छे के मोक्षने माटे तो आवो अनुभव ते ज
खरुं तीर्थ छे; जेणे स्वानुभव कर्यो तेनो आत्मा पोते ज पवित्र तीर्थ बनी गयो
–केमके ते भवसागरने तरे छे. असंख्यप्रदेशी आत्मा पोते स्वानुभवरूप
मोक्षसाधनानी भूमि छे तेथी ते ज तीर्थधाम छे; तेनी यात्रा करतां मोक्ष पमाय
छे. शुभरागने पण परमार्थे तीर्थ नथी कहेता, शुद्ध रत्नत्रयरूप अनुभवने ज
तीर्थ कहे छे – के जेना वडे नियमथी भवसमुद्रने तराय छे.
(– अनुसंधान पाना: ३३ उपर)