Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : ९ :
मोक्षने माटे शुद्धआत्मानुं घोलन
राजकोट शहेरमां वीर सं. २४९७ ना वैशाख सुद
पांचम वैशाख वद त्रीज सुधीना प्रवचनमांथी प्रसादी
* मोक्षने माटे हे जीव! तारे शुद्ध रत्नत्रय करवा योग्य छे; ते रत्नत्रयना कारण
रूप एवा कारण परमात्माने तुं अत्यंत शीघ्र भज, – ते तुं ज छो.
* आत्मा पोते परम स्वभावरूप कारण परमात्मा बिराजे छे; पर्यायमां परभाव
होवा छतां धर्मी जीव शुद्ध द्रष्टिथी पोताने कारण परमात्मा रूपे देखे छे, तेथी
कोई परभावमां तेने आत्मबुद्धि थती नथी, तेनाथी पोताने जुदो ज देखे छे.
* आत्मवस्तु परम महिमावंत छे. जो आत्मानो महिमा न होय तो पछी जगतमां
बीजा कोनो महिमा करवो? महिमावंत वस्तु ज पोतानो आत्मा छे, तेनो
महिमा लावीने तेने ध्येय कर. तेने ध्येय करतां सम्यग्दर्शनरूप कार्य सहेजे थई
थशे.
* परभावो छे ते परभावमां छे, – ते वखते हुं केवो छुं, हुं सहज गुणमणिनी
खाण छुं, पूर्णज्ञान ज मारुं स्रूप छे. – एम परभावथी पृथक्करण करीने धर्मी
पोताने शुद्ध देखे छे. ने शुद्धताने भजे छे, परभावने भजता नथी.
* आत्मा रागनी खाण नथी, आत्मा तो शुद्ध रत्नोनी खाण छे. बधा परभावोने
बाद करीने आवा गुणनिधान आत्माने एकने ज जे अनुभवे छे ते तीक्ष्ण बुद्धि
छे, ईन्द्रियोथी पार थईने तीक्ष्णबुद्धि वडे एटले के अतीन्द्रिय ज्ञान वडे तेणे
पोताना शुद्धआत्माने अनुभवमां लीधो छे.
* शुभरागमां भक्तिमां दया–दानमां के शास्त्रना भणतरमां रोकायेली बुद्धिने
तीक्ष्णबुद्धि नथी कहेता, ते तो स्थूळ छे, अज्ञानीने पण एवा स्थूळभाव तो
आवडे छे. गुणभेदना विकल्पो ते पण स्थूळमां जाय छे.
* भगवान आत्मा, तेना बे अंश: एक त्रिकाळ ध्रुव अंश, एक उपजतो–