: १० : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
विनशतो वर्तमान अंश. मोक्ष अने मोक्षमार्गरूप कार्य ते बंने पर्यायरूप अंश
छे; तेना वडे पोताना कारण परमात्माने ज ते भजे छे. परमात्मा पोताथी कोई
बीजो नथी, पोते ज ते छे.
* हे भव्य! परभाव होवा छतां तेनाथी रहित जे कारण परमात्माने तुं भजी रह्यो
छे ते बहु उत्तम कार्य छे, माटे हजी वधु ने वधु तेने तुं भज.
* प्रवीण बुद्धि तेने कहेवाय के जे पोताना परिपूर्ण तत्त्वने पोतामां देखे. पोते
पोताने ज जे न देखी शके एने प्रवीण केम कहेवाय? – ए तो अंध छे.
* भाई, बीजुं तने आवडे के न आवडे, तारा आनंदमय स्वतत्त्वने देखवाना
अभ्यासमां तुं प्रवीण था. ‘समयसार एवुं जे परम तत्त्व, तेना सिवाय बीजुं
कांईपण मारामां नथी’ – एम जे स्वतत्त्वने देखे छे ते शुद्धद्रष्टिवंत छे.
* शुद्धद्रष्टिथी जोतां परम तत्त्व एक ज देखाय छे. विभाव तेमां नथी. आ रीते
अमारा सहज तत्त्वमां विभाव असत् छे. विभाव असत् होवाथी तेनी अमने
चिंता नथी. सत्रूप एवुं शुद्ध आत्मतत्त्व ज अमारा हृदयमां स्थित छे. तेने ज
अमे सतत अनुभवीए छीए; ते ज मुक्तिनी रीत छे. आ सिवाय बीजी रीते
मुक्ति नथी – नथी.
* सहज चेतनारूप अमारा स्वभावने ज अमे चिंतवीए छीए, तेनुं चिंतन करतां
रागादि परभावो तो असत् थई जाय छे; आवा स्वभावनी कथा ते धर्मकथा छे.
* धर्मकथा तेने कहेवाय के जे रागने छोडावे ने वीतरागताने पुष्ट करे. जे कथा
रागथी लाभ मनावीने रागनी पुष्टि करे ते धर्मकथा नथी, ते तो अधर्मकथा छे,
– पापकथा छे.
* अमारा स्वभावमां रागनो कोई अंश छे ज नहि, अने ते स्वभावने अमे
अनुभवीए छीए, – त्यां परभावनी चिंता रहेती नथी. परभाव वगरनो
अमारो सत् स्वभाव तेने एकने ज अमे चिंतवीए छीए. तेना चिंतनमां
मोक्षनो आनंद वेदाय छे.
* आत्मामां संसारदशा अने सिद्धदशा एवी अवस्थाओ छे, जो अवस्था न ज
होय तो कार्य करवानुं रहेतुं नथी, ने वस्तु ज रहेती नथी; एटले अशुद्ध के शुद्ध
अवस्थाओ आत्मामां छे – एम जाणवुं जोईए. – आ व्यवहार छे. ते
व्यवहारना आश्रये निर्विकल्प जीवनो अनुभव थतो नथी. निर्विकल्प सहज
तत्त्वना अनुभव वडे बुधपुरुषोने शुद्धता प्रगटे छे.