Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : ११ :
* निर्णय करनार पर्याय अंदर स्वभाव तरफ एकाग्र थाय छे. रागमां एकाग्रता
वडे के पर्यायमां एकाग्रता वडे सहज स्वभावनो निर्णय थतो नथी. जेनो
निर्णय करवानो छे तेनी सन्मुख थवाथी ज तेनो साचो निर्णय थई शके.
बीजानी सन्मुख जोईने आत्मस्वभावनो साचो निर्णय न थाय.
* शुद्ध द्रष्टिवाळा अति आसन्न भव्य जीवोने पोतानां अंतरमां परम कारण
परमात्मा ज उपादेय छे; तेमां सहज सुखनो सागर ऊछळे छे. कलेशनो जेमां
प्रवेश नथी ने सुखनो जे समुद्र छे आवा उत्तम सारभूत स्वतत्त्वमां बुद्धि
जोडीने तेने ज तमे उपादेय करो.
* बंध हो के न हो, समस्त विचित्र मूर्तद्रव्यजाळ शुद्ध जीवना ३प थी रहित छे –
एम जिनदेवनुं शुद्ध वचन बुधपुरुषोने कहे छे – हे भव्य! आ जगप्रसिद्ध
सत्यने तुं जाण.
* जुओ, परथी भिन्न शुद्ध जीवने जे बतावे तेने ज शुद्ध वचन कहीए छीए.
महावीर भगवान आजे (वै० सुद दशमे) केवळज्ञान पाम्या.... तेमणे शुद्ध
वचन वडे आवो शुद्ध आत्मा बताव्यो.
* शुद्धतत्त्व उपर मीट मांडतां शुद्धपर्याय खीले छे. आवी शुद्धद्रष्टिमां धर्मी
सम्यग्द्रष्टिने कारण – कार्य बंने शुद्ध छे. शास्त्रकार कहे छे के अहो! परमागमना
आवा महान अर्थने सार–असारना विचारवाळी सुंदर बुद्धि वडे जे जाणे छे ते
सम्यग्द्रष्टि छे; तेने अमे वंदन करीए छीए.
* पर्यायने गौण करीने शुद्ध अंतरतत्त्वने देखो. द्रष्टिनी दिशाने द्रव्य तरफ फेरवीने
तेमां एकाग्र थाओ.
* सर्वज्ञना सर्वांगेथी जे वीतराग वाणीनो धोध वह्यो तेमां चैतन्यनुं
अद्भुतस्वरूप एवुं शुद्ध बताव्युं के जेमां परभावनो प्रवेश नथी, उदयभावो तो
नथी, ने क्षायिकादि भावोना भेदोथी पण जे पार छे. आवुं तत्त्व सर्वे
विकल्पोना रागथी पार छे तेथी ते सहज वैराग्यमय छे.
* आवुं सहज चैतन्यतत्व छे ते सर्वे परद्रव्योथी ने परभावोथी सर्वथा पराडमुख
छे, एटले परथी पराडमुख थईने शुद्ध स्वद्रव्यमां द्रष्टि करतां आवो आत्मा
अनुभवाया छे. अहो, एकला स्वद्रव्यना आश्रये ज मोक्षमार्ग छे.
* साचो वैराग्य शुद्ध आत्माना आश्रये थाय छे. रागना अंशमांय लाभनी बुद्धि
रहे त्यां साचो वैराग्य नथी. अहीं तो कहे छे के आत्मानुं सहज तत्त्व त्रणे काळ
रागवगरनुं वैराग्यस्वरूप ज छे,