Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 56

background image
: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : ७ :
* चैतन्यनुं स्वसंवेदन करवा माटे वीरताथी जे जाग्यो ते एवुं वेवलापणुं –
दीनपणुं न करे के मारे कांईक ईन्द्रियनुं आलंबन जोईशे, के शुभविकल्पनो
आधार जोईशे. ए तो चैतन्यनी वीरताथी कहे छे के हुं चैतन्य – एकलो मारी
स्वसंवेदन शक्तिथी मारा आत्माने प्रत्यक्ष करीश, तेमां बीजा कोईनी मदद मने
नथी. मारा चैतन्यना अतीन्द्रिभावथी हुं जाग्यो–तेमां बीजाना सहारा केवा?
* जेम खरे टाणे रजपूतनी शूरवीरता उल्लसी जाय छे तेम चैतन्यने साधवाना
खरा टाणे मुमुक्षु आत्मानी शूरवीरता जागी ऊठे छे, ने स्वभाव तरफ तेनी
परिणति उल्लसी जाय छे. पोताना स्वभावना उल्लास पासे बीजा कोई बाह्य
भावनी सामे ते जोतो नथी.
* शुद्धनयना आश्रये थयेली जे शुद्धपर्याय, तेने पण शुद्धनयना विषयमां भेळवी
दीधी छे, ने तेने ज आत्मा कह्यो छे; आ रीते समयसारनी १४मी गाथां मां
शुद्धात्मानी अनुभूतिने ‘आत्मा’ ज कही दीधो छे. ते अनुभूतिमां कोई भेद
विकल्प नथी, एकला आनंदस्वरूप आत्मानुं सीधुं वेदन वर्ते छे.
* विकल्प अने आत्मा वच्चे प्रज्ञानो सीधो घा पडे एवो भाव जे समजे ते ज
भगवाननी वाणीने समज्यो छे. अहो, भगवाननी वाणी आत्मा अने विकल्प
वच्चे घा करीने भेदज्ञान करावे छे, ने अज्ञानरूपी ताळां तोडीने चैतन्यनां
निधान खोली नांखे छे.
* विकल्प अने आत्मा वच्चे घा करीने तेने जुदा करवाना छे, ते घा विकल्पवडे न
थई शके पण ज्ञानवडे ज ते घा थई शके छे. ते ज्ञाने आत्माने तो पोताना
ज्ञानस्वरूपमां मग्न कर्यो ने विकल्पने जुदो कर्यो. आम रागथी जुदुं पडीने ते
ज्ञान मोक्ष तरफ परिणम्युं, आनंदस्वभावमां एकाग्र थयुं.
* अहो, आवुं तत्त्व अनुभवमां लईने प्राप्त करे एवा जीवो तो विरला लाखो
करोडोमां कोईक होय छे. आवा तत्त्वनो प्रेम करीने तेनी प्राप्तिनी झंखना
करनारा जीवो होय पण अनुभव करनारा तो बहु ज विरला होय छे. आवी
विरलता जाणीने, अंतरना अपूर्व उद्यमवडे पोते ते विरलामां भळी जवुं.